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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

होते हैं। उनके लिए उचित सावधानी बरतना संचालकोंका धर्म ठहरा। तमाम नियमोंकी परीक्षा उच्च कोटिपर पहुँचे हुए व्यक्तिसे नहीं, बल्कि सामान्य कोटिके मनुष्योंकी दृष्टिसे की जानी चाहिए। मैंने लालचकी जो बात कही थी, वह यह सोचकर कही थी कि उससे परोपकारी संस्थाओं में शामिल होनेका लालच अथवा उत्साह सभीके मनमें पैदा हो। चरखा-प्रेमीने संघको सफल बनाने के लिए जिन दो बातोंका सुझाव दिया है, वे सचमुच अच्छी हैं। यदि सब सदस्य चरखा-प्रेमीकी-सी होशियारीके साथ सूत कातें और उसे १०० प्रतिशत अच्छा बना दें तो खादीकी जबरदस्त प्रगति हो, ऐसी मेरी मान्यता है; और जिस तरह जोहरी अपने यहाँ इकट्ठे किये गये हीरोंकी जाँच कर उन्हें व्यवस्थित करता है और यत्नपूर्वक सँभालकर रखता है वैसे ही यदि चरखा-संघ आये हुए सूतको परखे, इकट्ठा करे और सँभालकर रखे तो उससे खादीकी भारी प्रगति होगी, इसमें कोई शंका नहीं।

[गुजराती से]
नवजीवन, २१-३-१९२६

१६१. स्वीकृति

शाह वसनजी जेतसीको ओरसे उनकी माता श्रीमती जेठीबाईके नामपर मुझे एक हीरकजटित सोनेकी जंजीर और सेठ वालजी कुँवरजीकी ओरसे नागफनीवाली सोनेकी अँगूठी तथा दो छोटे हीरे प्राप्त हुए हैं। ये मुझे, मेरी इच्छाके अनुसार, उपयुक्त देश-कार्य में खर्च करनेके लिए दिये गये हैं। मैंने उनका उपयोग खादी-प्रचारके लिए करनेकी बात सोची है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २१-३-१९२६

१६२. बंगालकी विशेषता

बंगाल बहुत-सी बातों में अपनी विशेषता दिखाता आया है। अब वह खादीके प्रचारमें भी अपनी विशेषता दिखा रहा है। दूसरे प्रान्तों में खादी काफी मात्रामें बनती है; परन्तु वे उसको बिक्रोके मामले में आत्मनिर्भर नहीं है, बल्कि उसके लिए तो उन्हें और प्रान्तोंपर ही निर्भर रहना पड़ता है। परन्तु बंगालने प्रारम्भसे ही स्वाश्रयी बननेको नीति अपनाई है। यह नीति किसी एक संस्थामें ही नहीं, बल्कि बंगालकी सभी खादी-संस्थाओंमें बरती जाती है। बंगालने अपने यहाँसे एक गज खादी भी दूसरी जगह बेचनेके लिए नहीं भेजी है।

बंगालका यह उदाहरण प्रत्येक खादी-संस्थाके लिए विचारणीय है। आज एक भी प्रान्त ऐसा नहीं है जो अपनी आवश्यकताकी पूर्तिके लिए काफी खादी उत्पन्न करके उसे अपने यहाँ बेचता हो और जो बचती हो उसीको बाहर भेजता हो। इस