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पत्र: काका कालेलकरको

लिखी हैं, जिनका अनुकरण हम आज न तो करते हैं और न कर ही सकते हैं। वह तो उन्होंने उस समयके रीति-रिवाजोंका वर्णन किया है। आज हमारे पास तुलसीदासजीकी अपेक्षा अधिक लौकिक अनुभव है और यदि हम उस अनुभवका उपयोग करके लौकिक बातोंमें तुलसीदासजीकी दृष्टिसे अर्थात् धार्मिक दृष्टिसे फेर-फार करें तो ही हम तुलसीभक्त हो सकते हैं। तुलसीदासजीने तो कहा है कि स्त्री तो ताड़ना के ही योग्य है। किन्तु हम आज ऐसा थोड़े ही मानते हैं ? विवाह संयम पालनेके लिए है और इसीलिए हमें विवाहकी इस मर्यादाका समय-समयपर दर्शन करना चाहिए। हम ऐसा नहीं करते, इसीलिए अब व्यभिचार, स्वेच्छाचार और अन्य दोष बढ़ गये हैं और विवाहका अर्थ केवल पशुवत् आचरण हो गया है। इससे हमें विचारपूर्वक छुटकारा पाना आवश्यक है।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (एस० एन० १९८७७) को माइक्रोफिल्मसे।

१५८. पत्र : काका कालेलकरको

शनिवार, चैत्र सुदी [७][१] २० मार्च, १९२६

भाईश्री काका,

आपने पहले पत्र लिखा, फिर उसे रोकनेका प्रयत्न किया, लेकिन उसमें सफल नहीं हुए। जितनी सफलता स्वामीको आपको रोकने में मिली उतनी ही सफलता आपको अपने पत्रको रोकने में मिली है। "जैसा करोगे वैसा भरोगे", यह उक्ति चरितार्थ हुई है। आपकी दलील तो मुझे बहुत ही क्लिष्ट जान पड़ी है। ऋषियोंने जब मांस-भक्षणके स्थानपर दूध पीनेकी आज्ञा दी और दूधको पवित्र माना तब उनकी निगाहमें गोमांसभक्षी हिन्दू थे। जो हिन्दू उस समय फलाहारी थे, उनके लिए उन्होंने दूधको पवित्र नहीं ठहराया। ये सब पवित्र वस्तुएँ अपवित्र वस्तुओंकी तुलनामें ही पवित्र बतायी गई हैं। मैं बकरीका दूध पीता हूँ, सो पवित्र समझकर नहीं। मैं उसे अपवित्र ही मानता हूँ और जब-जब पीता हूँ तब-तब सजग होकर और अरुचिपूर्वक ही पीता हूँ। इसे पीते समय मेरे मनमें यह खयाल रहता ही है कि कहीं मैं इसे मोहवश तो नहीं पीता। धार्मिक दृष्टिसे, मनुष्यकी शरीर-रचनाकी दृष्टिसे और रसायन शास्त्रकी दृष्टिसे दूध मनुष्यका आहार नहीं है, इसमें मुझे तनिक भी शंका नहीं। और यदि मुझे अपनी अन्य शक्तियोंका उपयोग करनेका लोभ और मोह न हो तो आप मुझे एक क्षणके लिए भी दूध पीता हुआ नहीं देखेंगे। मनुष्यका आदर्श आहार वनमें प्रकृतिके पकाये हुए फल ही हैं, इस बारेमें मुझे शंका नहीं। लेकिन मुझे रसायनशास्त्रका इतना ज्ञान नहीं है। मुझमें जितना चाहिए उतना संयम नहीं है और

 
  1. साधन-सूत्र में यहाँ ६ है; किन्तु उस तिथिको न तो शनिवार था और न २० मार्च, १९२६।