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१५३. पत्र : नलिनी रंजन सरकारको

साबरमती आश्रम
२० मार्च, १९२६

प्रिय मित्र,

देर तो हुई है पर कोई काम न किया जाये, इससे देर अच्छी। आपका पत्र अभी-अभी मिला। बड़ी खुशी हुई; आपने सब-कुछ विस्तारसे लिखा है। डॉ० विधानने इस सम्बन्ध में आपसे पहले ही एक छोटा-सा पत्र भेज दिया था। आपने तफसील देकर उसे गोया पूरा कर दिया है। डॉ० विधानके पत्रके उत्तरमें मैंने अपना संदेश भेज दिया है। इसलिए यहाँ उसे दोहरानेकी जरूरत नहीं है।

आशा है, यह संस्था[१] दिन-दिन प्रगति करेगी। सर राजेन्द्र नाथके हाथमें जो राशि है, उसका उपयोग करने में क्या अब भी कोई बाधा है?

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

श्रीयुत नलिनी रंजन सरकार

६ - ए, कॉरपोरेशन स्ट्रीट

कलकत्ता

अंग्रेजी पत्र (एस० एन० १०७०२) की फोटो-नकलसे।

१५४. पत्र : लाला लाजपतरायको[२]

साबरमती आश्रम
२० मार्च, १९२६

प्रिय लालाजी,

आपका पत्र मिला। आपके पत्रके उत्तरमें मैंने जो पत्र लिखा था, उसकी प्राप्ति आपने सूचित नहीं की। आशा है, वह आपको समयसे मिल गया होगा।

 
  1. चित्तरंजन सेवा सदन।
  2. यह लाला लाजपतरायके १७-३-१९२६ के पत्रके उत्तरमें लिखा गया था। लालाजीने गांधीजीके स्वास्थ्य के खयालसे भारतसे बाहर जानेकी सलाह देते हुए लिखा था कि अगर आप जाना तय करें तो आपके फिनलैंड प्रवास-कालके कुछ दिनोंतक वहाँ मैं आपकी सेवामें प्रस्तुत रहूँगा। मैं जानता हूँ कि वहाँ मैं आपके साथ रहूँगा, इसमें आपके लिए कोई आकर्षणकी बात नहीं हो सकती, लेकिन मैंने यह बात इसलिए लिखी है कि इस तरह मुझे आपके साथ जितने दिन रहनेका सौभाग्य और लाभ प्राप्त होगा, उतने दिन भारत में आपके साथ रहनेका अवसर मिलना तो असम्भव ही है।