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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सतत प्रयत्न करनेके बावजूद जो स्वप्नदोष हो, उसकी चिन्ता न करके ब्रह्मचर्यका पालन करते जायें। ब्रह्मचर्यको आचरणमें उतारने के बाद लम्बे समयके पश्चात् मनपर अधिकार होगा। कब होगा, यह कहा नहीं जा सकता, क्योंकि सबके लिए कालकी एक ही मर्यादा नहीं होती। प्रत्येक मनुष्यकी शक्तिके अनुसार समय कम अथवा अधिक लगता है। कोई जीवन पर्यन्त मनपर काबू नहीं कर पाता तो भी उसे आचारमें लाये हुए ब्रह्मचर्यका निश्चित फल तो मिलता ही है और वह भविष्यमें ऐसे शरीरका स्वामी बनता है जो मनको आसानीसे रोक सके ।

५. मेरे मतानुसार ब्रह्मचर्यका पालन करनेके लिए न तो पुरुषको स्त्रीसे अनुमति लेने की जरूरत है और न स्त्रीको पुरुषसे। अच्छा है कि इस विषय में दोनों परस्पर एक-दूसरेको सहायता करें। इस सहायताकी प्राप्तिका प्रयत्न करना उचित है। लेकिन अनुमति मिले या न मिले, जिसकी इच्छा हो वह ब्रह्मचर्यका पालन करे और उसका लाभ उठाये। संगसे बचने के लिए अनुमति लेने की जरूरत नहीं होती; परन्तु संग करने के लिए दोनोंको अनुमति आवश्यक है। जो पुरुष अपनी पत्नीकी अनुमति प्राप्त किये बिना संग करता है, वह बलात्कारका पाप करता है। वह इस तरह ईश्वरीय और सांसारिक दोनों नियमोंको भंग करता है।

मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (एस० एन० १९८७४) की माइक्रोफिल्मसे।

१५२. पत्र: परशुराम मेहरोत्राको

साबरमती आश्रम
शनिवार [२० मार्च, १९२६][१]

भाई परसराम,

तुम्हारा पत्र मिला। विद्यापीठकी जगह भले भर गई। विलंब होनेसे भी दूसरी जगह नहीं भर ली जायगी। वहांका कार्य पूरा करनेके बाद भी आना। टाइपराइटिंगका अभ्यास कर रहे हो यह ठीक है।

बापूके आशीर्वाद

श्री परसराम

'स्त्री दर्पण' कार्यालय

कानपुर (यू० पी०)

मूलपत्र (सी० डब्ल्यू० ४९६१) से।

सौजन्य: परशुराम मेहरोत्रा

  1. डाककी मुहरसे ।