पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/१८९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५३
पत्र: गिरधरलालको

हैं, यदि यह बात कोई मनुष्य मुझे समझा सके तो मैंने तो यह कहा है कि उसे समझने के लिए भाई शिवजी जिससे चाहें मैं उससे बात करनेके लिए तैयार हूँ। आखिरकार यदि पंचायत बैठेगी भी तो उनकी इच्छासे ही बैठेगी। पंचायत बुलानेमें यदि कोई ढील है तो वह भी उनके कारण अथवा कहना चाहिए कि भाई मावजीके कारण ही है। यदि पंचायत बैठेगी तो मैं आपका पत्र अवश्य उसे सौंप दूँगा। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं किसी भी बातको पंचायतसे छुपाऊँगा नहीं। मैं भाई शिवजीके प्रति आपके भक्ति-भावके लिए आपको बधाई देता हूँ। मैं आपकी दुःखकी भावनाको समझ सकता हूँ। आप विश्वास रखें कि आपके दुःखसे मैं दुःखी हूँ। लेकिन जो बात मेरे मनमें गहरी बैठ गई है, मैं उसे जबरदस्ती कैसे निकाल सकता हूँ?

मोहनदासके वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (एस० एन० १९८७३) की माइक्रोफिल्मसे।

१५१. पत्र : गिरधरलालको

आश्रम
१९ मार्च, १९२६

भाई गिरधरलाल,

आपका पत्र मिला। कुछ सन्तोष तो इस बातसे प्राप्त किया जा सकता है कि इस समय आपकी जैसी स्थिति जगतमें अन्य बहुत से लोगोंकी है।

१. आपके पास जो समय बचा, आप उसका उपयोग नहीं कर सके, इसके लिए आपकी अपेक्षा हमारा वातावरण ज्यादा जिम्मेदार है। इसमें ईश्वरका संकेत है, ऐसा मानकर कदापि सन्तोष न करना चाहिए, बल्कि अपने भीतर इस वातावरणका विरोध करनेको शक्ति विकसित करनी चाहिए।

२. जहाँ आप कुछ कर नहीं सकते, वहाँ व्यर्थ दुःखी होनेके बजाय आप रामनाम जपते और प्रसन्न रहते हैं, इसमें तो मुझे कोई भूल दिखाई नहीं देती।

३. घनकी प्राप्ति नहीं होती यह तो कोई दुःखकी बात नहीं। लेकिन यदि धर्मकी रक्षा न होती हो तो यह अवश्य दुःखकी बात है। धर्मकी रक्षा होती है या नहीं, यह तो आप स्वयं ही जान सकते हैं।

४. स्त्री-संगकी अपेक्षा स्वप्नदोषसे ज्यादा कमजोरी आती है, ऐसा मानना बहुत बड़ी भूल है। दोनों ही बातें कमजोरीके कारण होती हैं और अनेक बार स्त्री-संगसे ज्यादा कमजोरी पैदा होती है। लेकिन रिवाजके कारण हम स्त्री-संगसे पैदा होनेवाली कमजोरीको देख नहीं सकते और स्वप्नदोषसे मनपर चोट लगती है, इसलिए जितनी कमजोरी सचमुच होती है, उसकी अपेक्षा हम उसे ज्यादा मान लेते हैं। स्त्री-संग करनेके बावजूद स्वप्नदोष होता है, यह बात आपके ध्यानसे बाहर न होगी। इसलिए यदि आप ब्रह्मचर्यके महत्त्वको स्वीकार करते हों और उसका पालन करना चाहते हों तो