पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/१८८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अस्पृश्य किसको कहें? किसी मनुष्यको अपने जन्मके कारण अस्पृश्य मानना बड़ा पाप है। जिसके दिलमें भाव है और जो शरीरसे ही पवित्र है उसके मंदिरमें जाने से क्या हानि हो सकती है? आप अस्पृश्यताकी उपाधिमें से सर्वथा मुक्त हो जाय। आपके लिये अस्पृश्यताका संग्रह अनुचित है।

मोहनदास गांधीके वं० मा०

सरनामा : धूलिया

मूल पत्र (एस० एन० १९८७२) की माइक्रोफिल्म से।

१४९. पत्र: उमरावसिंहको

आश्रम
१९ मार्च, १९२६

भाई उमरावसिंहजी,

आपका पत्र मिला। मेरे पास न आपको देनेके लिये रुपये हैं, न वह मेरा क्षेत्र है, जिसमें आप हैं।

आपका,
मोहनदास गांधी

मूल पत्र (एस० एन० १९८७५) की माइक्रोफिल्मसे।

१५०. पत्र: पूंजा श्रवणको

साबरमती आश्रम
१९ मार्च, १९२६

भाईश्री ५ पूंजा श्रवण,

आपका पत्र मिला। मैं आपको किस तरह समझा सकता हूँ कि भाई शिवजीके प्रति मेरे मनमें न तो द्वेष है और न क्रोध! मैं अपने आपको भ्रान्त भी नहीं मानता। मेरी भूल मुझे आप अथवा कोई भी बता सके तो मैं उसे जानने और स्वीकार करनेके लिए और उसका प्रायश्चित्त करनेके लिए उत्सुक हूँ। मैंने जो धारणा बनाई है उसके लिए भाई शिवजी खुद जिम्मेदार हैं। मैंने भाई शिवजीके बारेमें जाँच-पड़ताल की, सो उनके प्रति अपने प्रेमके कारण और उनकी सहमतिसे ही की। यदि वे सहमत न होते तो मुझे उसका कोई भी हक नहीं था, यह बात में स्वीकार करता हूँ। पंचनिर्णयको प्रार्थना भी मैंने नहीं, उन्होंने की थी। किसी भी तरह भाई शिवजी निर्दोष