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पत्र : रामेश्वरदास पोद्दारको

उनकी याद आती है। इसी तरह जिन पुराने दिनोंकी चर्चा मैंने अभी की है, उन दिनों वे अपने घर मेरा जो आतिथ्य किया करती थीं, उसकी भी याद बहुत आती है। आशा है, तुम अपने अगले पत्रमें मुझे सूचित करोगी कि तुम पुनः पूरी तरहसे और पूर्ववत् स्वस्थ हो गई हो।

अगर मैंने अपने पत्र में श्रीमती गांधीकी कोई चर्चा नहीं की तो स्पष्टतः उसका मतलब यह था कि वे मेरे साथ बिलकुल मजेमें हैं और मेरी सहायता कर रही हैं। कानूनी तौरपर या और भी किसी तरहसे हम दोनों के एक-दूसरेसे अलग होनेका कोई खतरा नहीं है—और किसी कारणसे नहीं तो इस कारणसे कि हिन्दू-धर्मकी बात तो दूर रही, खुद मेरे नैतिक नियमोंमें भी इसकी गुंजाइश नहीं है। रामदास चरखेके काममें, मेरी सहायता कर रहा है। हरिलालके अलावा और किसी लड़केने शादी नहीं की है। रामदासकी सगाई अभी पिछले ही दिनों हुई है। शायद अगले साल शादी हो। वैसे इस समय जहाँतक वह अपने मनको समझता है, वह अभी दो साल शादी नहीं करना चाहता।

हेनरीसे कहो कि 'भगवद्गीता' के विभिन्न अंग्रेजी अनुवादोंका उसने जो तुलनात्मक संकलन तैयार किया है उसकी निजी प्रति अगर उसके पास हो तो मैं चाहूँगा कि उसे रजिस्टर्ड डाकसे मेरे पास भेज दे। उसने जो प्रति मुझे दी थी उसे तो, पता नहीं कैसे, मैंने कहीं इधर-उधर रख दिया है। इसलिए उसकी निजी प्रतिकी मुझे सख्त जरूरत है। उसकी नकल करवाकर मैं उसे वापस भेज दूँगा।

तुम्हारा,

श्रीमती मॉड चीजमैन

१५ सी, थॉर्नी हेज रोड
गनर्सबरी

लन्दन, डब्ल्यू ० ४

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १२४४७) की फोटो-नकलसे।

१४८. पत्र : रामेश्वरदास पोद्दारको

आश्रम
१९ मार्च, १९२६

भाई रामेश्वरजी,

आपका पत्र मिला। आप शोच न करें। कर्त्तव्यका यथाशक्ति पालन करनेके बाद शोचकी आवश्यकता नहीं है। द्वारिका इत्यादि स्थानों में जाना इसपर मेरी श्रद्धा नहीं है, इसलिये किसीकी न होनी चाहिए ऐसा फलितार्थ नहीं निकलता है। शुद्ध भावसे ऐसे तीर्थक्षेत्रों में जानेमें पाप नहीं है। इसलिये मैंने आपको सलाह दी कि आप अपनी धर्मपत्नी इ० को द्वारकाजी ले जाय। आखरका तीर्थक्षेत्र तो सबके लिये पवित्र हृदय ही है। आपकी मानसिक व्यावी मिटनेका उपाय रामनाम जप ही है।