१४४. पत्र : जोआकिम हेनरी राइनहोल्डको
साबरमती आश्रम
१८ मार्च, १९२६
प्रिय मित्र,
आपका पत्र मिला। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि मेरे लेखोंसे आपको लाभ हुआ है। आप 'यंग इंडिया' के किसी भी लेखका अनुवाद कर सकते हैं। यूरोपमें जर्मन और फ्रेंच भाषाओं में अनुवाद मिल सकते हैं और सर्वश्री एस० गणेशन, पाइक्रॉफ्ट्स रोड, ट्रिप्लिकेन, मद्रास, द्वारा प्रकाशित एक अंग्रेजी संस्करण भी है।
हृदयसे आपका,
प्रोफेसर, फ्री यूनिवर्सिटी लीग
अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १२४४६) की फोटो-नकलसे।
१४५. पत्र : च० राजगोपालाचारीको
साबरमती आश्रम
१८ मार्च, १९२६
प्रिय सी० आर०,
मेरे और केलप्पनके बीच जो पत्र-व्यवहार हुआ है, उसे साथमें भेज रहा हूँ। मैं आपकी कठिनाइयाँ जानता हूँ। जो बोझ आपसे न उठाते बने, मुझे बता देनेकी कृपा करेंगे। आपका असली काम तो आपने जो आश्रम स्थापित किया है, उसे विकसित करना है। बाकी सब बादमें ही आता है। इसलिए अगर कोई काम करना आपको अपनी शक्तिसे बाहर जान पड़े तो मुझे वैसा सूचित करने में तनिक भी संकोच न करें। उदाहरणके लिए, मैं निर्णय करनेके लिए कोई मामला आपको सौंपू और आपको लगे कि आप यह काम नहीं कर सकते या अगर आपकी सलाहपर कोई संस्था स्थापित की जाये, लेकिन उसकी देखरेखका काम आपके लिए अशक्य हो तो मुझे साफ-साफ वैसा बता दें। लेकिन, अगर अपने मुख्य काममें बाधा डाले बिना आप यह सब कर सकें तो मैं चाहूँगा कि अवश्य करें। इस पत्रको और इससे पहलेके पत्रको पढ़कर मुझे बताइए कि केलप्पनके बारेमें क्या किया जाये।