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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मीरपुर और जालन्धर जिलोंके रहनेवाले हैं। वे सबके-सब निरपवाद रूपसे पंजाबके रहनेवाले हैं। यह अनुमान लगाना बड़ा ही कठिन कि उन्हें एशियाई न कहकर रंगदार लोग क्यों कहा गया है। और यह कहना तो और भी ज्यादा मुश्किल है कि जब वे स्पष्ट रूपसे ब्रिटिश प्रजाजन हैं तो फिर उन्हें विदेशी क्यों कहा गया है।

इसी पंजीयनमें जो व्यवहार छिपा हुआ है, उसे समझना कोई कठिन बात नहीं है। यहाँ भी बात वही है, जो दक्षिण आफ्रिकामे है। केवल परिमाणमें भेद है, और मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं कि यदि ग्रेट ब्रिटेनमें भी उतनी बड़ी संख्या में भारतीय जा बसें तो वहाँके लोग भी भयभीत हो उठेंगे और कानून बनाने लगेंगे। अभी कुछ ही दिन पहले समाचारपत्रोंमें यह बात प्रकाशित हुई थी कि लिवरपूलमें चीनी- धोबियोंको बहुत सताया गया। अमेरिकामें भी हालत कोई बेहतर नहीं है। कुछ ही दिन पहले मैंने इसके बारेमें उस महाद्वीपमें रहनेवाले एक भारतीय विद्यार्थीका पत्र प्रकाशित किया था। अभी हालमें ही अमेरिकासे लौटे हुए एक विद्यार्थीने मुझसे मुलाकात की थी। वे सुसंस्कृत व्यक्ति हैं, अच्छी और शुद्ध अंग्रेजी बोलते हैं और बड़े विनयी हैं। उन्होंने मेरे सामने अमेरिकी रंग-द्वेषका जो चित्र खींचा वह बड़ा दुखद था और उनकी बातोंसे मुझे लगा कि यह रंग-द्वेष निरन्तर बढ़ता ही जा रहा है। इसलिए दक्षिण आफ्रिकामें आज जो प्रश्न उपस्थित है, वह स्थानीय नहीं है; वह तो समस्त संसारको बहुत भारी समस्या है। जबतक एशियाई जातियाँ पराधीन हैं और किस बातमें उनकी भलाई है, इस ओर ध्यान नहीं देतीं तबतक उनके साथ आज जो व्यवहार किया जा रहा है, वैसा व्यवहार करना बड़ा ही आसान काम है, फिर चाहे वे इंग्लैंड में हों अथवा अमेरिका या आफ्रिकामें, और वहीं क्यों, खुद अपने-अपने घरमें—चीन या भारत में—भी उनके साथ ऐसा व्यवहार करना आसान है। लेकिन वे बहुत दिनोंतक नींदमें नहीं पड़े रहेंगे। तो हमें यह आशा रखनी चाहिए कि उनको जागृतिसे कहीं वर्तमान गुत्थी और अधिक न उलझ जाये और जातीय कटुताका जो भाव आज मौजूद है, वह और अधिक न बढ़ने पाये। लेकिन पश्चिमी दुनिया शोषणकी जिस प्रवृत्तिसे ग्रस्त है, उसका स्थान जबतक सच्ची सेवाकी भावना नहीं लेती या जबतक एशिया और आफ्रिकाकी जातियाँ यह नहीं समझ जातीं कि उनके सहयोगके बिना, जो बहुत अंशों में स्वेच्छाप्रेरित ही होता है, उनका शोषण नहीं हो सकता और ऐसा समझकर जबतक वे इस तरह सहयोग करना बन्द नहीं करती तबतक इस भावी संकटको कभी टाला नहीं जा सकता। मौजूदा उदाहरणको ही लें। बहादुर पंजाबियोंके साथ जो जातीय भेदभाव बरता जा रहा है, उसे बरदाश्त करनेकी उन्हें जरूरत नहीं है और न अपमानको ही सहन करना चाहिए। जहाँ उनके साथ उचित व्यवहार नहीं किया जाता, उन्हें वहाँ रहना ही नहीं चाहिए और यदि उन्हें वहाँ रहना ही है तो उन्हें अपने प्रति किये जानेवाले अपमानजनक व्यवहारके आगे झुकना नहीं चाहिए। उन्हें उसकी अवज्ञा करनी चाहिए और उसके परिणामस्वरूप कैद की सजा भुगतनी चाहिए। अकसर यह देखा गया है कि जिनके विरुद्ध भेद-भाव बरता जाता है, वे लोग खुद ही, चाहे बहुत थोड़े अंशोंमें ही क्यों न हो,