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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दाना देगा और यदि हम इन लोगों में स्वतन्त्रताकी भावना पैदा करना चाहते हैं तो हमें उन्हें ऐसा काम देना पड़ेगा जिसे वे अपने उजड़े घरोंमें आसानीसे कर सकें और जिससे उनको नमक-रोटी मिल सके। यह केवल चरखेसे ही हो सकता है। और जब वे स्वावलम्बी हो जायेंगे और अपना गुजारा खुद कर सकेंगे तब हम उनसे स्वतन्त्रताकी, कांग्रेस आदिकी बात कह सकते हैं। इसलिए जो लोग उनको काम देंगे और दो रोटी पानेका साधन देंगे वे ही उनके मुक्तिदाता होंगे और वे ही उनमें स्वतन्त्रताकी भूख जगायेंगे। इसीलिए चरखेका राजनीतिक महत्त्व है। इसके अतिरिक्त, इसमें विदेशी कपड़ेको हटानेकी शक्ति है और इस प्रकार अंग्रेजोंको भारतपर कब्जा रखनेका जो बड़े से बड़ा लोभ है, उसको दूर करनेकी क्षमता है। अंग्रेज लोग इस लालचके कारण ही तो भारत में जलियाँवाला बाग-जैसे असंख्य हत्याकाण्डकी पुनरावृत्ति करनेका खतरा मोल लेते हैं।

और चूँकि मैं लॉर्ड रीडिंगसे खादी पहनने के लिए कहता हूँ, इससे खादीका राजनीतिक मूल्य क्यों घट जाना चाहिए? निश्चय ही अंग्रेजोंसे हमारा झगड़ा इसलिए नहीं है कि वे अंग्रेज हैं। असहयोगका तरीका अंग्रेजोंमें ऐसा परिवर्तन करनेका तरीका है जिससे वे भारतका हित सोच सकें। यदि वे हमारी अत्यन्त प्रिय आकांक्षाओंकी पूर्ति करेंगे, यदि उनका उद्देश्य भी वही होगा जो हमारा है और वे खादी पहनेंगे, यदि वे हमसे भारतमें शराबकी बिक्री बिलकुल बन्द करानेमें और भयंकर सैनिक व्ययको कम करने में सहयोग करेंगे और भारत में संगीनोंके बलपर नहीं, बल्कि हमारी सद्भावनाके बलपर रहनेके लिए तैयार होंगे तो क्या हम एक समान उद्देश्य की पूर्ति में अपने सहकर्मियोंके रूपमें उनका स्वागत न करेंगे? मेरे विचारसे तो अंग्रेजोंको खादी पहनने और चरखा चलाने के लिए कहने से इन चीजोंका राजनीतिक मूल्य बढ़ता है और साथ ही इनके पीछे अंग्रेजोंके प्रति वैमनस्यकी भावना है, यह सन्देह तनिक भी नहीं रहता।

[अंग्रेजीसे] यंग इंडिया, १८-३-१९२६

१४२. एक नीरस परिसंवाद

यह लेख 'यंग इंडिया' के ११ फरवरीके अंकमें प्रकाशित "बाकी पैसेसे खादी खरीदिए" के क्रम में लिखा गया है। शीर्षक स्वयं च० राजगोपालाचारीने चुना है। लेकिन पाठक खुद ही तय करें कि यह परिसंवाद नीरस है अथवा सरस।[१]

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १८-३-१९२६
 
  1. इस प्रस्तावनाके साथ कताई और खादी कार्य पर राजगोपालाचारी द्वारा लिखा एक अत्यन्त रोचक परिसंवाद प्रकाशित किया गया था।