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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सादगी भी तारीफके लायक होती है। और यदि मध्यम वर्गके लोग अपनी खुराकको सादा बना लें तो उनका पैसा बहुत बचे और उनकी तन्दुरुस्ती भी बहुत सुधरे।

देशके युवक अपनी पढ़ाई-लिखाई खत्म करके जीवन में प्रवेश करने से पहले कुछ समय जेलोंमें रहें, यह सुझाव निश्चय ही आकर्षक है; किन्तु इसपर अमल कैसे किया जाये? यदि सविनय अवज्ञा फिर आरम्भ करके छात्रोंको जेल जानेका अवसर न दिया जाये तो उनके सम्मुख जेलके अनुशासनको प्रस्तुत करनेका एक ही मार्ग रह जाता है, और वह यह है कि वे कम से कम कुछ समय गाँवों में जाकर जम जायें, किन्तु वहाँ सफाईका विशेष ध्यान रखें और उनकी गन्दगीको न अपनायें। जिस हदतक हरएक कैदीके लिए अपना भंगो खुद बनना आवश्यक होता है उस हदतक वे भी अपने भंगी खुद बन सकते हैं।

निराश नहीं

एक पत्र-लेखकने भारतको वर्तमान राजनीतिक अवस्थाके सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट करते हुए बड़ी आशा व्यक्त की है। मैं चाहता हूँ कि पाठक भी उनकी इस आशावादिताकी झलक देखें। वे कहते हैं:

मुझे प्रसन्नता है कि इस समय जैसी परिस्थितियाँ दिखाई देती हैं उनसे मुझे उतनी निराशा नहीं होती जितनी मेरे कई मित्रोंको है। मैं यह अनुभव नहीं करता कि असहयोग असफल हो गया है या हमने उसके अन्तिम परिणाम देख लिये हैं। मैं अब भी विश्वास करता हूँ कि भारतको भविष्यमें स्वराज्य मिलेगा और हमें अन्तिम विजय सविनय क्रान्तिसे ही मिलेगी। सम्भव है कि हमें अपना कार्यक्रम बदलना पड़े, किन्तु हमारी मुक्ति केवल इसी साधनसे साध्य है। मेरा विश्वास है कि हमें निकट भविष्यमें ही विजय मिल जायेगी। निकट भविष्यसे मेरा मतलब एक साल नहीं है, न ५ साल है, किन्तु उसका अर्थ निश्चय ही १० सालसे कम है; क्योंकि मैं देखता हूँ कि लोगोंका हृदय अभी भी स्वस्थ है। जो खराबी है, वह जनताके नेताओंमें है। जनसाधारण सामान्यतया शिक्षितवर्गसे मार्गदर्शनकी अपेक्षा रखता है; किन्तु यह शिक्षितवर्ग भटक गया है। यदि ये शिक्षित लोग अपने दायित्वोंको फिर समझ सकें तो जनसाधारण निश्चय ही उनका अनुगमन करेगा—ऐसे ही जैसे कुतुबनुमाकी चुम्बककी बनी सुइयाँ ध्रुवोंकी ओर जाती हैं।

असहयोग और सविनय अवज्ञाके सम्बन्धमें इन पत्र-लेखक भाईमें जितनी श्रद्धा है, उतनी श्रद्धा सब असहयोगियोंमें हो तो कितना अच्छा हो! कोई भी आदमी यह देख सकता है कि यद्यपि असहयोगसे उस ठोस अर्थमें स्वराज्य नहीं आ सका है जिसे लोग समझते हैं, फिर भी उससे हमारे राजनीतिक जीवन में क्रान्ति आ गई है; उससे जनसाधारणमें इतनी चेतना आ गई है जितनी मेरे विचारसे किसी दूसरी बातसे नहीं आ सकती थी। और इस बारेमें भी कोई सन्देह नहीं है कि हमें जब-कभी स्वतन्त्रता मिलेगी, वह सविनय अवज्ञा-सहित, किसी-न-किसी रूप में असहयोगको लागू