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जब वह आशा अपने चरम बिन्दुपर थी, तभी ऐसा लगा मानो वह बिखर गई है। तबसे ऐसा लगता रहा है जैसे चढ़े ज्वारका जोर बराबर कम होता जा रहा है। आज हम मध्य रात्रिकी घोर अँधियारीमें से गुजर रहे हैं। लेकिन शायद अभी हमको इससे भी अधिक घना अंधकार देखना बाकी है।

लेकिन वह पवित्र सप्ताह अभी भी हमारी आशाका केन्द्र-बिन्दु है। इसलिए यद्यपि हम लोग विभक्त हो गये हैं और सरकार हमारी राष्ट्रीय माँगोंकी, फिर चाहे वे कितनी ही आवश्यक और विवेक-संगत क्यों न हों, निर्भय होकर उपेक्षा कर रही है, फिर भी हमें यह राष्ट्रीय सप्ताह मनाना चाहिए।

फिर, ईश्वरकी इस दुनिया में रात सदैव नहीं बनी रहती है। हमारी रात्रिका भी अन्त होगा। बस, एक ही चीजकी जरूरत है—हमें इसके लिए प्रयत्न करना चाहिए। इस सप्ताहको हम कैसे मनायें? हड़ताल द्वारा नहीं और न अभी सविनय अवज्ञा करके ही। आज हम हिन्दुओं और गैर-हिन्दुओंके बीच एकताकी घोषणा करने या उसके लिए खुशियाँ मनानेकी स्थिति भी नहीं है, क्योंकि हिन्दू व मुसलमान परस्पर एक- दूसरेको अविश्वासको दृष्टिसे देखते हैं और वे अपनी शक्ति और बलकी वृद्धि पारस्परिक सहिष्णुता और सहायतासे करनेके बदले सरकारकी कृपासे करनेकी कोशिश कर रहे हैं। इसलिए फिलहाल इस प्रश्नको ऐसे ही छोड़ देना चाहिए। अस्पृश्यता धीरे-धीरे परन्तु निश्चय ही खत्म हो रही है। अब केवल खादी ही रह जाती है, जिसके द्वारा बड़े पैमानेपर कुछ कर दिखानेकी और सामूहिक प्रयत्नकी गुंजाइश है। खादीके मंचपर सब लोग मिलकर कार्य कर सकते हैं। उसकी बिक्रीकी व्यवस्था की जा सकती है। स्वेच्छासे कातने के कार्यको प्रोत्साहन दिया जा सकता है। अखिल भारतीय देशबन्धु स्मारकके लिए रुपये इकट्ठे किये जा सकते हैं, जिसका एकमात्र उद्देश्य ही खादी और चरखेकी प्रगति और प्रचार करना है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि राष्ट्रीय सप्ताह मनानेके और भी कई तरीके हैं। स्थानिक कार्यकर्त्तागण विभिन्न तरीकोंकी योजना कर सकते हैं। मैं तो सिर्फ उन्हीं बातोंका विचार कर सकता हूँ, जिनमें करोड़ों लोग शामिल हो सकते हैं और जो हमें उन सात दिनोंकी याद दिलाते हैं, और जो स्वराज्य प्राप्तिके मार्गमें सहायक हो सकते हैं। मेरे विचारमें दूसरी एक भी ऐसी बात नहीं आती है जो चरखेकी तरह अच्छे ढंगसे इन शर्तोंको पूरा कर सके।

यह कितने हर्षकी बात है कि कोई एक काम ऐसा है, जिसे हम कर सकते हैं। और सो भी अच्छी तरह कर सकते हैं—उससे हमें खोया हुआ आत्मविश्वास प्राप्त होगा और उससे वह शक्ति प्राप्त होगी जिसके बलपर हम सभी कठिनाइयोंको पार कर जायेंगे। केवल चरखा ही एक वस्तु है, जिसपर सब वर्गों और धर्मोके स्त्री, पुरुष, बालक और बालिकाएँ काम कर सकती हैं। चरखा ही एक साधन है जो अमीरों और गरीबोंको जोड़नेवाली कड़ीका काम कर सकता है। वही एक चीज है जो अँधेरे में आशाकी किरण उत्पन्न कर सकती है, और अधभूखे किसानों के अंधकारमय और दरिद्रतापूर्ण झोंपड़ों में प्रकाशकी ज्योति ला सकती है। जिन्हें चरखेमें विश्वास हो वे इस राष्ट्रीय सप्ताह में खादीको अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए प्रयत्न करें।