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१४०. पत्र : गंगाराम छत्रालाको

आश्रम
१७ मार्च, १९२६

भाई गंगाराम,

आपका पत्र मिला। उससे ऐसा लगता है कि उपर्युक्त मुहल्लेमें मुख्य रूपसे कड़वा पाटीदारोंकी बस्ती है और उसमें घर भी इन पाटीदारोंके ही हैं। यदि ऐसा है तो मुझे लगता है कि अपने घरके सम्बन्ध में प्रतिबन्ध लगानेका अधिकार अन्य सब लोगोंकी तरह पाटीदारोंको भी होना चाहिए। दक्षिण आफ्रिकाका उदाहरण अलग तरहका है। जो लोग वहाँ रहते हैं उनके वर्तमान अधिकार छीनकर उन्हें बरबाद करनेकी बात है। यदि मेरे समझने में कोई भूल हुई हो और पाटीदार कोमकी ओरसे किसीपर अत्याचार किया जाता हो तो आपका असहयोग करना उचित होगा।

मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्

श्री गंगाराम खोडीदास छत्राला

नं० ५१८, वाड़ीगाम, गंगाराम पारेखकी पोल

दरियापुर, अहमदाबाद

गुजराती पत्र (एस० एन० १९८७०) की माइक्रोफिल्मसे।

१४१. टिप्पणियाँ

राष्ट्रीय सप्ताह

हमारे राष्ट्रीय जीवनमें ६ और १३ अप्रैलके दिन चिरस्मरणीय हैं। ६ अप्रैल, १९१९ के दिन सत्याग्रहका वह अनुपम दृश्य दिखाई दिया था, जिसमें हिन्दू, मुसलमान और दूसरी जातियों के लोगोंने खुलकर भाग लिया था। वह दलित वर्गीकी स्वतन्त्रताका दिन भी है। उसी दिन सच्ची स्वदेशीकी नींव डाली गई थी और उसी दिन सारे देशने सविनय अवज्ञाका आरम्भ भी किया था। उस दिन जनसाधारणकी स्वतन्त्रता और प्रतिरोधकी भावना फूट पड़ी थी।

और १३ अप्रैलको जलियाँवाला हत्याकाण्ड हुआ। उसमें हिन्दू, मुसलमान और सिखोंका खून मिलकर एक धारामें बहा था। एक ही दिन कूड़ा-कचरा डालनेकी एक अज्ञात जगह सारे भारतके लिए राजनैतिक तीर्थ स्थान बन गयी और जबतक भारतका अस्तित्व रहेगा तबतक वह वैसी ही बनी रहेगी। उस दिनसे आजतक अनेक घटनाएँ घटित हुई है। १९२१ में जनमानस आशासे भर उठा था और