यह साहस देखकर तो मुझे उनसे ईर्ष्या होती है। वे अपना शरीर, जैसा 'भगवद्गीता' में कहा है, उसी ढंगसे सहर्ष त्याग देंगी अर्थात् जो घर पूरा काम दे चुकनेके बाद घराशायी हो जानेको स्थितिम पहुँच जाता है और उसका स्वामी जिस प्रकार उसे खुशी-खुशी त्याग देता है, उसी प्रकार वे अपने शरीरको त्याग देंगी।
हृदयसे आपका,
अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९३६५) की फोटो-नकलसे।
१३९. पत्र : दीनशा म० मुन्शीको
आश्रम
१७ मार्च, १९२६
भाईश्री ५ मुन्शी,
आपका पत्र मिला। मैंने सार्वजनिक सभामें जो कुछ कहा था सो एक सार्वजनिक व्यक्तिके रूपमें कहा था। मैं उससे अपने आपको बाँधता नहीं। लेकिन वहाँ आपने मेरे जिस वचनका उल्लेख किया है, उस वचनके भंग होनेकी बात तो मैं नहीं जानता। यदि आपकी सहायताकी रकम बन्द कर दी गई है तो वह किसी कारणसे बन्द की गई होगी। आपको नुकसान पहुँचाने के इरादेसे तो वह कदापि बन्द नहीं की जा सकती, ऐसी मेरी मान्यता है और यदि इस बारेमें आपके साथ किसी तरहका अन्याय हुआ हो तो आप समितिको पत्र लिख सकते हैं। आपको कर्ज कहाँसे दूँ? मेरे पास अपनी कहने लायक तो फूटी कौड़ी भी नहीं है।
मोहनदासके वन्देमातरम्
राष्ट्रीय विनय मन्दिर
गुजराती पत्र (एस० एन० १९८६९) की माइक्रोफिल्मसे।
- ↑ दूसरा पता पॅसिलसे लिखा हुआ है।