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१३८. पत्र : उर्मिला देवीको

साबरमती आश्रम
१७ मार्च, १९२६

प्रिय बहन,

आपका पत्र मिला। पढ़कर मन बड़ा व्यथित हुआ। लगता है, आपको परेशानियोंसे कभी छुटकारा नहीं मिलेगा। यही तो सोच रहा था कि इतने दिनोंसे आपने कोई पत्र क्यों नहीं लिखा! कारण, इस अरसेमें आपका एक पत्र तो आना ही चाहिए था।

जाहिर है कि आपको काफी दिनोंतक कश्मीरमें रहनेकी जरूरत है। आपने मुझे पुरी आनेको निमन्त्रित किया है और यह प्रलोभन दिया है कि जबतक मैं वहाँ रहूँगा, आप मेरे साथ रहेंगी। लेकिन, इस विषयमें अपने-आपपर मेरा कोई अधिकार नहीं रह गया है। अगर रहता भी तो इन दिनों में आश्रम में अपना समय इतने आराम और शान्तिसे बिता रहा हूँ कि यहाँसे कहीं जाना नहीं चाहूँगा। मुझे गर्मीका डर नहीं है। उसे मैं अच्छी तरह बरदाश्त कर सकता हूँ, खासकर इसलिए कि मैं थकानेवाला कोई काम नहीं कर रहा हूँ। लेकिन, मुझे जमनालाल और शंकरलाल बैंकरकी देख-रेखमें रहना पड़ता है और मैंने उन्हें किसी पहाड़ी स्थानपर जानेका वचन दिया है। अगर समुद्र-तटपर जानेसे काम चल जाये तो मेरी जानकारीमें पुरीसे भी एक बेहतर जगह है, यद्यपि उसे लोग जानते नहीं। यह जगह मेरे जन्म स्थानसे कुछ ही मील दूर है। वहाँ मुझे पूरी शान्ति और ग्रामीण जीवनका सुख मिल सकता है। वहाँ पुरी-जैसी गगनचुम्बी अट्टालिकाएँ नहीं हैं, जो हमें घूरती-सी प्रतीत होती हैं, और न वहाँ मनको क्लेश पहुँचानेवाले वे अकाल-पीड़ित लोग ही देखनेको मिलते हैं जो तीर्थ-यात्रियोंसे मुट्ठी-भर गन्दा चावल पाने के लिए झुण्ड बाँध-बाँधकर मन्दिरोंके पास इकट्ठे होते हैं। पुरी मुझे अपने अतीतके पुनीत और गौरवमय इतिहासका स्मरण नहीं कराता, बल्कि हमारे वर्तमान अधःपतनकी याद दिलाता है। कारण, क्या अब यह उन सिपाहियोंके लिए स्वास्थ्य-वर्धनका स्थान नहीं बन गया, जिन्हें हमारे ही पैसे पर हमारी स्वतन्त्रता लूटनेके लिए पाला जाता है? उसमें मेरे लिए कोई आकर्षण नहीं है। उसके बारेमें सोचकर ही मेरा मन खिन्न हो जाता है और मैं जबतक वहाँ रहा, मेरा मन दुःखी रहा। मित्रोंने मुझे बहुत आरामदेह जगहमें ठहराया था। यह जगह बिलकुल समुद्र-तटके सामने थी। लोगोंने मेरी बहुत खातिरदारी भी की। लेकिन जब मैं एक ओर उन सैनिक बैरकोंको और दूसरी ओर उन क्षुधापीड़ित उड़िया लोगोंको देखता था और उनके प्रति पैसेवाले लोगोंकी निर्मम उदासीनताके बारेमें सोचता था, तब मुझे जो मानसिक कष्ट होता था, उसका तो कोई उपचार उनके पास नहीं था।

आपकी बहनके इस जीवट-भरे व्यवहारको मैं अच्छी तरह समझ सकता हूँ। दवाओं और डाक्टरोंको दूर रखनेके उनके संकल्पकी पूर्ण सफलताकी कामना करता हूँ। उनका