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पत्र : विधानचन्द्र रायको

को भारत से मिलनेवाले वेतनपर भारतके कर्मचारीके रूपमें ही रख सकता हूँ, अन्यथा मैं चाहता हूँ कि वे यहाँसे बिलकुल चले जायें। इस लिहाजसे वह चाहे फ्रांसीसी हो, जर्मन हो या चीनी हो, सभीपर यह बात लागू होती है। अंग्रेजोंमें सराहनीय गुण हैं—क्योंकि वे मनुष्य हैं। यही बात में किसी अरबके लिए या दक्षिण आफ्रिकाके किसी नीग्रोके लिए भी कहूँगा।

"अंग्रेजों के चले जानेपर आन्तरिक झगड़े उठ खड़े होंगे, क्या उनका भय मुझे नहीं है? अफगानिस्तानकी आक्रान्ता फौजोंका भय नहीं है?" हाँ, है, लेकिन, ये ऐसी सम्भावनाएँ हैं जिनका में स्वागत करूँगा। हम आज भी लड़ रहे हैं, लेकिन अपने दिलमें लड़ रहे हैं। कटारें छिपी हुई हैं। जिस समय इंग्लैंडमें "गुलाबोंका युद्ध" चल रहा था, उस समय यदि यूरोपके देशोंने शान्ति स्थापनाके खयालसे वहाँ हस्तक्षेप किया होता तो आज ब्रिटेन कहाँ होता?

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १२४४५) की फोटो-नकलसे।

१३५. पत्र : विधानचन्द्र रायको

साबरमती आश्रम
१७ मार्च, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। यह जानकर बड़ी खुशी हुई कि आखिरकार आपने [देश-बन्धु] स्मारक अस्पतालका श्रीगणेश कर दिया। तारीख[१] बहुत अच्छी चुनी गई है। बासन्ती देवीके जन्म-दिवसके अवसरपर उनके दीर्घायु होनेकी कामना करता हूँ। यह शुभकामना उनतक पहुँचा दें। उनसे यह भी कहिए कि अभी अनेक वर्षोंतक उनकी आवश्यकता है—और कुछ नहीं तो इसी कारण कि उस अस्पतालको पूरी तरह सफल बनाना है, जिसकी स्थापनाका काम उनके पतिको इतना ज्यादा प्रिय था।

उद्घाटन-समारोहमें आपके साथ शरीक हो सका तो मुझे बड़ी खुशी होगी। लेकिन हो सकता है, वसा न कर पाऊँ। कारण तो आप जानते ही हैं। उस दिन मेरी सारी शुभकामनाएँ आपके साथ रहेंगी।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

डॉ० विधानचन्द्र राय

३६, विलिंग्टन स्ट्रीट, कलकत्ता
[अंग्रेजीसे]

फॉरवर्ड, २३-३-१९२६
  1. २१ मार्चको बासन्ती देवीका जन्म-दिवस था और उसी दिन रवीन्द्रनाथ ठाकुर चित्तरंजन सेवा सदनका उद्घाटन करनेवाले थे।