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कैथरीन मेयोके साथ हुई बातचीतका विवरण

बच सकते हैं, क्योंकि अभी भी हमने अपने हाथोंका हुनर बिलकुल खो नहीं दिया है। इस प्रकार अपनी आवश्यकताओंको आप ही पूरी कर सकने की व्यवस्था करना हमारे लिए कोई कठिन काम नहीं होगा। इसके लिए तो, जिस तरह हम खाना खाते हैं और पानी पीते हैं, उसी तरह उतने ही सहज ढंगसे खाली वक्त में प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा काम करना काफी होगा। आज ऐसी बहुत-सी चीजें हैं जिनके लिए मैं पश्चिमके ऊपर निर्भर करता हूँ। जब मुझे विश्वास हो कि मैं केवल वही चीजें लेता हूँ जो पश्चिममें ज्यादा बेहतर बनती हैं, और जो मेरे लिए लाभकर हैं तब यह सौदा सम्मानजनक, स्वतन्त्र और परस्पर लाभकारी सौदा होगा। लेकिन आज जो-कुछ होता है, वह दोनों पक्षोंके लिए हानिकर है। शोषण तो शोषक और शोषित, दोनोंके लिए ही समान रूपसे बुरी चीज है।

मैं इस देशको डायरवादसे बचाना चाहता हूँ। अर्थात्, मैं यह नहीं चाहता कि जब मेरा देश शक्ति-सम्पन्न हो तो वह दूसरे देशोंपर अपना व्यापार थोपनेके लिए किसीको भयभीत करे। अकसर हमें कठिन अनुभवोंके जरिये सीखना पड़ता है, लेकिन यदि मैं ऐसा मानता होता कि हममें से हर एकको उसी दुश्चक्रसे गुजरना होगा और वही सब करना होगा जो दूसरोंने किया है, तब तो मुझे यही समझना चाहिए कि किसी प्रकारकी प्रगति असम्भव है, और उस हालतमें मुझे आत्मघातका सिद्धान्त ही प्रचारित करना चाहिए। लेकिन हम आशा करते हैं, और अपने बच्चोंको इस आशाके साथ ही प्रशिक्षित करते हैं कि वे अपने पिताओंकी गलतियोंसे बचेंगे। मैं तो वास्तवमें इस बातके धुंधले लेकिन स्पष्ट लक्षण देखता हूँ कि पश्चिममें अच्छे दिन आनेवाले हैं। आज पश्चिममें अपने कदम पीछे हटानेका एक जबर्दस्त आन्दोलन चल रहा है। विचारोंके क्षेत्रमें काफी प्रगति है, हालाँकि उन विचारोंको अभी कार्यरूप नहीं दिया गया है। लेकिन आज चिन्तक लोग जो सोच रहे हैं, कल वही कार्यका रूप धारण करेगा।

मेरे पास लगभग नित्य ही अमेरिकी लोग आते हैं। वे केवल कुतूहलवश नहीं आते। वे इस भावनाके साथ नहीं आते कि "आओ चलो, भारतीय चिड़ियाघरके इस जानवरको देख आयें"; बल्कि वे मेरे विचारोंको जाननेकी सच्ची इच्छाके साथ आते हैं। जो लोग भारतकी गरीबीको देखते हैं और देखकर दुःखी होते हैं, उन्हें सतहके नीचे जाकर इस गरीबीका सच्चा कारण ढूँढ़ना चाहिए। ऐसा नहीं है कि यह गरीबी धीरे-धीरे कम हो रही है। अस्पतालों, स्कूलों, पक्की सड़कों और रेलोंके बावजूद यह गरीबी बढ़ती ही जा रही है। इन सब चीजोंके बावजूद आप देखेंगी कि लोग जैसे चक्कीके दो पाटोंके बीच पिसे जा रहे हैं। वे जबर्दस्ती थोपी गई बेकारी और निठल्लेपनका जीवन जी रहे हैं। सौ साल पहले हर झोंपड़ी अपने साधनोंमें चरखेकी सहायता से अभिवृद्धि कर सकती थी। अब हर किसान खेतीके मौसममें अपना लकड़ीका लेकर काम करता है, जिससे केवल कुछ इंच गहरी जोताई ही हो पाती है। लेकिन वर्षके दूसरे मौसमोंमें उसके पास कुछ खास करनेको नहीं होता। ऐसी हालतमें किसान, उनके बच्चे, उनकी औरतें क्या करें? पुराने जमानेमें औरतें अपने चरखे लेकर बैठती थीं और कताईके साथ-साथ गीत गाती जाती थीं। ये कोई गन्दे या भद्दे गीत नहीं

 
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