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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सम्बन्धित लोगोंपर तरह-तरह की दुरभिसन्धियोंके आरोप भी लगाता है। मैं चाहता हूँ कि लोग उसमें जो भी अच्छाई या बुराई देखें, उसे बढ़ाकर न कहें। इसलिए, यदि कुछ ईमानदार अमेरिकी निष्पक्ष भावसे और धैर्यपूर्वक इस आन्दोलनका अध्ययन करेंगे तो सम्भव है कि संयुक्त राज्य अमेरिकाको इस आन्दोलनके बारेमें कुछ जानकारी हो सके। मैं इसे अपने ढंगका अनोखा आन्दोलन समझता हूँ, हालाँकि मैं खुद इसका जनक हूँ। मेरा कहनेका तात्पर्य यह है कि हमारा सारा आन्दोलन संक्षेपमें चरखा और उसके फलितार्थों में समाया हुआ है। मेरे लिए तो यह बारूदका विकल्प है। कारण, चरखा भारतके करोड़ों लोगोंको स्वावलम्बन और आशाका सन्देश देता है। और जब ये करोड़ों इन्सान सचमुच जाग उठेंगे तो उन्हें अपनी स्वतन्त्रता फिरसे प्राप्त करनेके लिए एक अँगुली भी उठानेकी जरूरत नहीं पड़ेगी। चरखेका सन्देश वास्तवमें शोषणकी भावनाके स्थानपर सेवाकी भावनाको प्रतिष्ठित करनेका है। पश्चिममें जिस तत्त्वकी प्रधानता है, वह है शोषण। मेरी ऐसी कोई इच्छा नहीं है कि मेरा देश शोषणकी भावनाकी नकल करे।

(यात्रा और यातायातके साधनोंकी वृद्धिके परिणामोंके सम्बन्धमें:)

ये सब हमें मुक्ति दिलानेके लिए नहीं, हमें घोटनेके लिए आ रहे हैं। मैं यही आशा कर सकता हूँ कि हम इस संकटसे बच जायेंगे। लेकिन हो सकता है कि हमें यह कड़वा घूँट पीना ही पड़े। अगर हम पश्चिमके अनुभवोंसे सबक नहीं लेते तो हमें यह घूँट पीना पड़ सकता है। लेकिन इस संकटको टालनेके लिए मैं हर सम्भव प्रयत्न कर रहा हूँ। पश्चिमके शक्तिशाली देश आपसमें कितना ही लड़ते रहें, लेकिन इस एक बातपर वे सभी सहमत हैं: "आओ, हम दूसरे देशों—एशिया और आफ्रिका—का शोषण करें।" यह गोया उनका एक [अलिखित] समझौता है और वे उसका असाधारण रूपसे ठीक-ठीक पालन कर रहे हैं। मान लीजिए कि अगर हम अपने पश्चिमी शिक्षकोंकी हर तिकड़म सीख लें, तो क्या होगा? और अधिक बड़े पैमानेपर वही तो होगा जो अगस्त, १९१४ में हुआ था। अगर यूरोप और अमेरिका यह कहना जारी रखते हैं कि "हम हमेशा ऊपर रहेंगे और तुम हमेशा नीचे दबे रहोगे", और यदि हम अहिंसाका सन्देश नहीं अपनाते और यह नहीं समझ लेते कि हमें सिर्फ इतना ही करना है कि जिस चीजकी हमें जरूरत नहीं है उसे पश्चिमसे खरीदना बन्द कर दें तो वह स्थिति आकर रहेगी। इसलिए हालाँकि ऊपरसे उलटा दिखता है, लेकिन मैं अपनी हर-चन्द कोशिश यही करता हूँ कि शोषणकी इस भावनाके साथ सहयोग न करूँ। भले ही ३० करोड़ लोगों में मैं केवल एक ही हूँ, लेकिन मैं पश्चिमकी नकल करनेसे इनकार करता हूँ। कमसे-कम मरते हुए मुझे यह सन्तोष तो होगा कि मैं उसी कामको करते हुए मर रहा हूँ जिसका निर्देश मेरी आत्माने दिया।

केवल हमारी अपनी रजामन्दीसे ही हमारा शोषण किया जा सकता है, फिर चाहे हमने अपनी सहमति मजबूरीसे दी हो या खुशीसे, जानते-बूझते दी हो, या अनजाने ही, और केवल तभी किया जा सकता है, जब हम यूरोप और अमेरिकाकी बनी हुई तरह-तरहकी आकर्षक वस्तुएँ खरीदेंगे—खास तौरसे कपड़ा। इससे हम