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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

थोड़ा काम-काज देख सकता हूँ, वह मेरे लिए दवाका काम करेगा। आश्रम न छोड़नेके बहुत से कारण हैं। आश्रम छोड़नेसे हानि हो सकती है। इसलिए यदि तुम मुझे विचारपूर्वक बंधन मुक्त करो तो मैं मुक्त होना चाहता हूँ। यदि तुम यह मानते हो कि मुझे मसूरी जाना ही चाहिए तो मैं अवश्य जाऊँगा। पर आज जो मानसिक उद्वेग हुआ है, उसकी बात तुमको लिखनी उचित समझकर लिखी है। मैं शंकरलालसे भी बातचीत करूँगा।

सतीश बाबू कल आये हैं। डॉ० सुरेश शनिवारको आयेंगे।

मणिबन तुम्हारे साथ रहना नहीं चाहती। उसे अपनी गुजराती अच्छी करनी है। फिर भी मदालसाको[१] जानकीबहनके[२] पास ही रहना चाहिए। बहुत समयतक आश्रम में रहेगी तो यों ही बहुत-कुछ सीख लेगी।

कन्या गुरुकुलको बारीकी से देखना और मुझे लिखना। यह भी लिखना कि उसमें कितनी कन्याएँ हैं।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र ( जी० एन० २८५९ ) की फोटो-नकलसे।

१३२. पत्र : नाजुकलाल नन्दलाल चौकसीको

सोमवार, १५ मार्च, १९२६

भाई नाजुकलाल,

मैंने तुम्हारे पत्रका जवाब फुर्सतके समय देनेकी बात सोची थी। आज मौन है, इसलिए इतना समय निकाल रहा हूँ। तुम्हारे पत्रके एक वाक्यका गूढ़ अर्थ मैंने समझ लिया है। "मेरी मर्जी", ऐसा जवाब नहीं दिया जा सकता, यह मैं समझता हूँ। मैंने तो तुम्हारी कल्पना मोतीके शिक्षकके रूपमें की है और यदि तुम संयमका पालन कर सकोगे तो उसके शिक्षक अवश्य बन सकोगे। हमने स्त्री-जातिको बहुत दबाया है। अब यदि स्त्रियाँ स्वतन्त्रताकी शिक्षा प्राप्त करनेपर अति करती हैं तो हमें इससे डरने की जरूरत नहीं है। तुम तो इससे समझ ही जाओगे, लेकिन मोतीको समझाना। मेरी मदद चाहिए तो वह तुम्हें सुलभ है ही। उसके पत्रोंको में ध्यानसे पढ़ता हूँ और दुःखो भी होता हूँ। पत्रोंमें मैं प्रेम नहीं देखता। उनमें रस भी नहीं होता। मोती मानो बेगार करती है। यदि सम्भव हो तो वह पत्र लिखे ही नहीं। यदि तुम उसे उसकी प्रतिज्ञासे मुक्त करना उचित समझो तो लिखना। हमें उससे जोर-जबरदस्ती करके पत्र नहीं लिखवाना है। उसकी लिखावटमें भी सुधार नहीं हो रहा है।

 
  1. जमनालालजीकी पुत्री।
  2. जमनालालजीकी पत्नी।