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१३०. पत्र : ए० ए० पॉलको[१]

साबरमती आश्रम
१५ मार्च, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मेरे लिए आठ महीने भारतसे बाहर रहना तो बहुत होगा। फिर भी, मैं कार्यक्रमकी तफसीलोंकी और वहाँ मुझसे किस तरहका काम करनेकी अपेक्षा की जायेगी, इसकी जानकारी प्राप्त करना चाहूँगा। मैं यह भी जानना चाहूँगा कि राष्ट्रीय आन्दोलनमें चीनी ईसाइयोंका क्या स्थान है और मुझे सिर्फ क्या ईसाई श्रोताओंके सामने ही बोलना पड़ेगा। मैं जल्दीमें कोई निर्णय नहीं लूँगा और अगर वहाँ जाऊँगा भी तो मात्र इसी सम्भावनाके कारण कि चीनको अपने स्वातंत्र्य-संघर्षके लिए अहिंसाका सन्देश स्वीकार करनेको प्रेरित करके उसकी सेवा कर सकूँ। इस विषयमें साफ-साफ सोच-विचार करके निर्णय लेनेके लिए मुझे यह जरूरी लगता है कि कुछ प्रमुख चोनी यहाँ आकर मेरे साथ सारी चीजोंपर बातचीत करें और फिर खुद ही तय करें कि उनके और मेरे विचारोंमें सचमुच साम्य है अथवा नहीं। महज एक प्रदर्शनको चीज बननेके लिए वहाँ जानेका मेरा कोई इरादा नहीं है।

हृदयसे आपका,

श्री ए० ए० पॉल
मद्रास

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ११३६५) की फोटो-नकलसे।

१३१. पत्र: जमनालाल बजाजको

साबरमती आश्रम
सोमवार [१५ मार्च, १९२६][२]

चि० जमनालाल,

मसुरीके विषयमें आज मुझे बहुत उद्वेग रहा। वहाँ या और कहीं जानेका मन ही नहीं होता। मुझे स्वास्थ्य-सुधारके लिए वायु परिवर्तनकी जरूरत नहीं है। जितने आरामकी जरूरत है, उतना मुझे यहाँ ठीक तरह मिल जाता है और यहाँ जो

 
  1. यह पॉलके ९ मार्च, १९२६ के पत्र (एस० एन० ११३६४) के उत्तरमें लिखा गया था।
  2. साधन-सूत्रमें, संभवतः ऊपर ज़मनालाल बजाज द्वारा यह टीप दी गई है, "तारसे उत्तर दिया, १९-३-१९२६, दिल्ली।"