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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दौरोंके लिए दे सकते हैं, और यदि दे सकते हैं, तो कितना और कब। आपकी क्या इच्छा है—मैं सन्तानम्‌को खुद ही पत्र लिखूँ?

आपका,

श्रीयुत च० राजगोपालाचारी

गांधी आश्रम

तिरुचेनगोडु

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९३६१) को फोटो-नकलसे।

१२६. पत्र: राजबहादुरको

आश्रम
१४ मार्च, १९२६

भाईश्री,

आपका खत मीला। आपका खादीप्रेम देखकर मुझको हर्ष होता है। तकली चलानेमें कुछ खर्च नहीं होता। मेरा विश्वास है कि पटियालेमें भी ...[१] लोग तो चलाते हैं। जिसको चरखेपर कातनेकी आदत है वे थोड़े कष्टसे अपने आप तकलीपर सूत कात लेते हैं। पैसेकी रसीद आपको मिल गई होगी। क्योंकि आजकल उत्कलमें और पैसे भेजनेकी आवश्यकता नहीं है इसलिये आपका दान खद्दर-प्रचारमें रक्खा गया। खद्दरका हेतु भी ऐसे ही दुःखित लोगोंकी सहायके लीये है।

आपका,
मोहनदास गांधी

श्रीयुत राजबहादुर

रिटायर्ड डी० पी० आई०
पटियाला

(पंजाब)[२]

मूल पत्र (एस० एन० १९८६३) की माइक्रोफिल्मसे।

 
  1. साधन-सूत्रमें यहाँ कटा-फटा है।
  2. साधन-सूत्र में पता अंग्रेजीमें है।