पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/१५७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२१
पत्र: च० राजगोपालाचारीको

अन्य ईटोंको निकालने अथवा खिसकाने में नहीं होती। इस जगत में सुधारके हर कामका सही आरम्भ तो एक मनुष्य द्वारा होता है। फिर आज तो बाल-विवाह आदि कुरीतियों के विरुद्ध बहुत अच्छा वातावरण भी तैयार हो गया है। जो लोग इन्हें कुरीतियाँ मानते हैं उनके द्वारा इनके खिलाफ अमल करने-भरकी देर है। यदि हम आज इस विषयपर लोगोंकी राय लें तो बहुमत यही पाया जायेगा कि बाल-विवाह बुरा है, विवाहमें अंधाधुंध खर्च करना बुरा है तथा विदेशी वस्त्रोंसे सजना-सँवरना त्याज्य है, बुरा है। इसी प्रकार अन्य कुरीतियों के विरुद्ध भी बहुमत मिल सकता है। इसके बावजूद अभीतक ये कुरीतियाँ मिटी नहीं हैं, क्योंकि कुरीतियोंका विरोध करनेवाले असलमें निर्बल हैं। वे कथनीमें शूर हैं किन्तु करनीमें कायर हैं। यह कायरता तो तभी दूर होगी जब कुछ व्यक्ति बेहद कष्ट उठाकर भी ऐसे अवसरोंपर कदापि उपस्थित न हों।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १४-३-१९२६

१२५. पत्र : च० राजगोपालाचारीको

साबरमती आश्रम
१४ मार्च, १९२६

प्रिय सीं० आर०

मैंने शंकरलालको भेजा आपका तार तथा महादेवको भेजा हुआ पत्र देखा है। दुःखकी बात है कि सन्तानमने आपका साथ छोड़ दिया है। आपने मुझे जो पत्र भेजा था, उससे प्रकट होता था कि उसका सोचनेका तरीका गलत था। क्या उसे यह नहीं समझाया जा सकता कि उसका ऐसा सोचना बिलकुल गलत है कि चूँकि वह सारे काम एक साथ नहीं कर सकता, इसलिए उसे कोई काम करना ही नहीं चाहिए?

पता नहीं, आपको पटना जानेकी झंझटसे छुटकारा मिला या नहीं। आशा करता हूँ कि मिल गया होगा, लेकिन यदि नहीं मिला हो तो उम्मीद करता हूँ कि आप जाते समय साबरमती होकर जानेका अवकाश निकाल लेंगे। कृपलानी कल पटना जा रहे हैं और मैंने उन्हें यह काम सौंपा है कि यदि आप पटना जायें तो वे आपको यहाँ ले आयें।

लेकिन जो भी हो, यदि आप नहीं आ सकते तो मुझे अपनी कठिनाइयाँ विस्तारसे बताइए और यह भी सूचित कीजिए कि क्या मैं किसी भी तरहसे कुछ मदद कर सकता हूँ। मुझे यह भी बताइए कि इस साल क्या आप कुछ समय