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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मात्र स्वर्ग में पहुँचने-जितनी आँकी होती तो राम भी आज तैंतीस करोड़ देवी-देवताओंकी पंक्ति में आ जाते। लेकिन उस राम-भक्तने राम-नामकी कीमत मोक्ष-पदके साथ जोड़ दी; फलतः इस नामको लेकर अनेक मोक्ष प्राप्त कर सके। भगवान तो भक्ताधीन हैं, दासानुदास हैं। भक्त भगवानका जो मूल्यांकन करते हैं, भगवान उसकी रक्षा करते हैं। जो बात भक्त और भगवानकी है, वही बात संचालकों और संस्थाकी है। अतएव मुझे उम्मीद है कि उपरोक्त चरखा-प्रेमी अपने दुःखको सुखके रूपमें ग्रहण करेगा, चरखा संघको तुच्छ वस्तु नहीं मानेगा और स्वयं समझकर लोगोंको समझायेगा कि चरखा संघको पहुँचा हुआ सूत वापस प्राप्त करनेके लिए उचित प्रयत्न करनेकी आवश्यकता है। ऐसा करनेसे उसके अपने सूतकी कीमत बढ़ती ही है न? इसलिए जिनके पास धन है, जिनकी अपने ही हाथसे कते सूतके कपड़े पहननेकी शुभेच्छा है, उन्हें तकनीकी विभागके मन्त्री द्वारा लगाये गये प्रतिबन्धका स्वागत करना चाहिए। मैं तो यह सलाह देना चाहूँगा कि सदस्योंको इसी बातमें सुख मानना चाहिए कि चरखा संघको भेजा हुआ उनके सूतका उपयोग सारे भारतके लिए किया जाये। ज्यादा अच्छा यही है कि वे इस सूतको यज्ञमें दी गई अपनी आहुति मानें और उसे वापस लेनेकी इच्छा न रखें।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १४-३-१९२६

१२४. कुरीतियोंके साम्राज्यमें क्या करें?

एक सज्जन लिखते हैं:[१]

हमने जो नियम अंग्रेज सरकारकी शासन-पद्धतिके बारेमें अपनाया है वही यहाँ भी लागू होता है। यदि लोग सहयोग देकर उक्त शासन-पद्धतिको न टिकाये रखें तो वह आज ही टूट गिरे। इसी प्रकार कुरीतियों के साम्राज्यको नष्ट-भ्रष्ट करनेका इच्छुक भी यदि उनसे असहयोग करे तो वह साम्राज्य भी मिट जाये। पर यहाँ सहज ही यह प्रश्न उठता है कि केवल एक व्यक्ति द्वारा ऐसे असहयोगसे क्या होने-जानेवाला है? इसका उत्तर यह है कि जिस व्यक्तिने असहयोग किया वह तो जीत गया, दोषमुक्त हो गया। और उसके सहयोगके अभावमें कुरीतियोंके उस साम्राज्यकी उतने परिमाणमें तो हानि हुई ही मानी जायेगी। मकानकी केवल एक ईट खिसक जाये तो मकान तुरन्त गिर नहीं पड़ता; किन्तु यह तो सभी समझ जाते हैं कि जिस दिन उसकी एक ईट खिसकी उसी दिनसे मकान कमजोर होने लगता है। और पहली ईट निकालनेमें जितनी दिक्कत पेश आती है उतनी परेशानी

 
  1. पत्रका अनुवाद यहाँ नहीं दिया गया है। पत्र-लेखक जानना चाहता था कि बाल-विवाह, विदेशी वस्त्रोंका उपयोग तथा दिखावेके लिए किया जानेवाला अंधाधुंध खर्च आदि सामाजिक कुरीतियोंसे कैसे बचा जा सकता है।