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११९. पत्र : लल्लूभाई ब० पटेलको

आश्रम
शुक्रवार, १२ मार्च, १९२६

भाई लल्लूभाई,

तुम्हारा पत्र मिला। किसी भी लड़कीके किसी भी अंगको छिदवाना मुझे तो जंगलीपन लगता है।

मोहनदासके वन्देमातरम्

श्री लल्लूभाई बकोरभाई पटेल

नापाड़

आनन्द तालुका

गुजराती पत्र (एस० एन० १९८५८) की माइक्रोफिल्मसे।

१२०. पत्र: कस्तूरचन्द सू० मारफतियाको

साबरमती आश्रम
शुक्रवार, १२[१] मार्च, १९२६

भाई श्री कस्तूरचन्द,

आपका पत्र मिला। मैं श्रीयुत ... [२] श्रीमती ... के[३] विवाहको समझ नहीं सका हूँ। स्वयं तो सामान्यतया विधवा-विवाहको पसन्द ही नहीं करता हूँ। किस स्थितिमें विधवा-विवाह इष्ट है, यह मैंने 'नवजीवन' में प्रसंगानुसार बताया है।[४] मैं उससे आगे नहीं जा सकता। इसके अतिरिक्त में सामान्य रूपसे वर्णाश्रम धर्मको मानता हूँ। मुझे यह विवाह उस दृष्टिसे भी ठीक नहीं लगता। लेकिन मैं उसकी सार्वजनिक रूपसे चर्चा करनेके लिए किसी तरह भी तैयार नहीं हूँ। उससे समाजकी कोई सेवा हो सकती है, ऐसा मुझे प्रतीत नहीं होता। और जबतक में दम्पतीका पक्ष नहीं जानता तबतक मैं टीका करनेका अधिकारी हूँ, ऐसा भी मुझे नहीं लगता। इसीसे मैंने आपको सामान्यतः मेरा क्या विचार है, यही बताया है। परन्तु वह भी सार्वजनिक रूपसे व्यक्त करनेके अभिप्रायसे नहीं। ज्यादा सोच-विचार किये बिना और

  1. मूलमें तारीख १३ है; लेकिन उस दिन शुक्रवार नहीं था।
  2. नाम छोड़ दिये गये हैं।
  3. नाम छोड़ दिये गये हैं।
  4. देखिए "विधवा-विवाह", २१-२-१९२६।