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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आपके तीसरे पत्रको प्रति बहुत दिलचस्प है। आपका जेलका अनुभव बड़ा उपयोगी है। जेलसे निकलनेपर आपने वहाँकी तमाम चीजोंको एक विशेष दृष्टिसे देखते हुए जो प्रतिक्रियाएँ व्यक्त की हैं, वे लोगोंको सहज ही गम्भीर विचारके लिए प्रेरित करती हैं। मैं आपके इस विचारसे सहमत हूँ कि असहयोग असफल नहीं हुआ है और न उसकी इति ही हो गई है। मैं आपकी इस बातसे भी सहमत हूँ कि स्वराज्य, कई लोग उसको जितना निकट आया मानते होंगे, उससे कहीं अधिक निकट आ गया है। सब-कुछ शिक्षित वर्गोंके मत-परिवर्तनपर निर्भर करता है। अगर हममें से कुछ लोग सत्यपर डटे रहेंगे, और मैं जानता हूँ कि अवश्य डटे रहेंगे तो वे लोग एक-न-एक दिन इसके कायल होंगे ही। मुझ जैसे कट्टर असहयोगीका स्वराज्यवादियोंके प्रति जो रवैया है, उसे समझाने के लिए बहुत विस्तारसे कहनेकी आवश्यकता है। इसलिए यहाँ मैं उसके सम्बन्धमें कुछ नहीं कहूँगा। लेकिन एक वाक्यमें मैं यह कह सकता हूँ कि मेरा रवैया इस आशापर आधारित है कि किसी भी अग्रगामी नीतिके सम्बन्ध में उनसे अधिकसे-अधिक कर सकनेकी अपेक्षा रखनी चाहिए।

यह बिलकुल सही है कि पंजाबके किसानों-जैसे लोगोंके बीच चरखेको सहायक धन्धेकी तरह दाखिल नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वे लगभग सारे समय कताईसे अधिक लाभदायक धन्धोंमें व्यस्त रहते हैं। लेकिन, मध्यमवर्गके लोगोंके पास तो काफी फालतू समय रहता है। सो अगर उनके दिलमें समूचे देशके लिए कोई दर्द है तो उन्हें करोड़ों दीन-दुःखी जनोंकी बात सोचनी चाहिए और उनके लिए वे अगर और कुछ नहीं कर सकते तो कमसे-कम इतना तो करें कि खादी पहनें और लोगोंके सामने एक उदाहरण पेश करनेके लिए तथा उन्हें प्रोत्साहन देने के लिए प्रतिदिन आधा घंटा सूत कातें। और इसका जबरदस्त राजनीतिक महत्त्व आपकी सूक्ष्म और तीक्ष्ण बुद्धिसे छिपा तो नहीं ही होगा। इसका वह राजनीतिक महत्त्व इस बातमें निहित है कि जो करोड़ों लोग आज पशुसे भी बदतर जिन्दगी जी रहे हैं, उनके पास तब एक सम्मानजनक धन्धा और जीविकोपार्जनका एक साधन होगा। आज तो उन्हें कोई काम करनेको प्रेरित ही नहीं किया जा सकता है। और वे ऐसे निरीह बन गये हैं कि किसी भी अत्याचारीके अत्याचारको चुपचाप बरदाश्त कर लेते हैं। और अगर मैं लॉर्ड रीडिंगको खादी पहननेको आमन्त्रित करता हूँ तो इससे इसका राजनीतिक महत्त्व कैसे खत्म हो जाता है? अगर मैं लॉर्ड रीडिंगको असहयोग और सविनय अवज्ञा या दोनोंमें किसी एकको या दोनोंको अपनानेके लिए आमन्त्रित करूँ तो क्या असहयोग या सविनय अवज्ञाका महत्त्व समाप्त हो जायेगा?

और अन्तमें, मैं मानता हूँ कि जबतक जनसाधारणपर हमारा इतना नियन्त्रण और प्रभाव न हो जाये कि उसकी ओरसे किसी हिंसात्मक प्रदर्शन द्वारा देशकी शान्ति भंग करनेका कोई खंतरा हमें न रहे तबतक सामूहिक सविनय अवज्ञा असम्भव है। अतीतमें मैंने जब-कभी हिंसा भड़कनेपर सविनय प्रतिरोध बन्द करवाया, आप देखेंगे कि ऐसे हर मौकेपर उस हिंसामें कांग्रेसियोंका हाथ था और इसलिए उसका राजनीतिक महत्त्व था । यदि मुझे यह पक्का विश्वास हो जाये कि जो भी हिंसात्मक घटनाएँ