पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/१४६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

११०. पत्र : टी० के० माधवनको

साबरमती आश्रम
११ मार्च, १९२६

प्रिय माधवन,

आपका पत्र मिला। शुचिन्द्रम्के समझौतेसे मुझे खुशी हुई। डॉ० नायडूने उसके बारेमें मुझे तार भेजा था और जवाबमें मैंने उन्हें लिख दिया कि जबतक समझौतेका पूरा पाठ मुझे नहीं मिल जाता, तबतक 'यंग इंडिया' में मैं उसपर नहीं लिखूँगा। अब मालूम हुआ है कि वह सब गोपनीय है। इसलिए मैं समझता हूँ कि मुझे इसके बारेमें कुछ नहीं कहना चाहिए।

दीवान महोदयके निर्णयके विरोध स्वरूप आपका सदस्यतासे त्यागपत्र दे देनेका विचार मुझे कतई पसन्द नहीं है। अगर इसी तरह हर सदस्य, जो किसी निर्णयको अनुचित माने, त्यागपत्र देने लगे तो कोई भी सदस्य नहीं बच रहेगा। हमें अपने मामले में आप ही निर्णायक नहीं बन जाना चाहिए, जिस तरह कि आप बन रहे हैं। आप कैसे जानते हैं कि आपकी व्याख्या ठीक है और दीवानकी गलत? निश्चय ही में इस मामलेके गुण-दोषोंके बारेमें कुछ नहीं जानता, लेकिन मैं उस सिद्धान्तको जानता हूँ जिसपर विरोध-स्वरूप इस्तीफा दिया जा सकता है। अनुचित निर्णयके विरोधमें सदनको स्थगित करनेका प्रस्ताव तो रखा जा सकता है, या कोई वक्तव्य दिया जा सकता है अथवा और बहुत-सी चीजें हैं जो की जा सकती हैं, लेकिन यह निश्चय ही त्यागपत्र देनेका कारण नहीं बन सकता। मैं चाहता हूँ कि आपका हर कार्य सुविचारित और शालीन ढंगका हो। एक साधारण सदस्यकी अपेक्षा आपकी जिम्मेदारी बहुत ज्यादा है, क्योंकि आप दलित वर्गोंके एक प्रतिनिधि हैं और दुर्भाग्यसे स्थिति यह है कि आपकी मामूली-सी भूलको भी बढ़ा-चढ़ाकर देखा व बताया जायेगा, जब कि साधारण सदस्योंकी बहुतेरी बेवकूफियाँ भी माफ कर दी जायेंगी।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत टी० के० माधवन

सदस्य, त्रिवेन्द्रम विधान-सभा

त्रिवेन्द्रम

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९३५५) की माइक्रोफिल्मसे।