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१०७. पत्र : सुन्दरस्वरूपको

साबरमती आश्रम
११ मार्च, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। आप 'यंग इंडिया' से जो भी अनुवाद करना चाहें, कर सकते हैं, लेकिन आप ऐसा कहकर कुछ प्रकाशित न करें कि अनुवाद मेरे द्वारा प्रमाणित है। कारण यह है कि मैं आपके अनुवादोंको जाँच नहीं सकता। इसलिए आप जो कुछ भी करें, पूरी तरह अपनी जिम्मेदारीपर और अपने काममें मेरे नामका उल्लेख किये बगैर करें। मैं तो कुल इतना सकता हूँ कि आपके रास्तेकी कानूनी कठिनाई दूर कर दूँ और वह इस पत्रसे दूर हो जाती है।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत सुन्दरस्वरूप

लँढोरा हाउस

मेरठ सिटी

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९३५२) की माइक्रोफिल्मसे।

१०८. एक पत्र

साबरमती आश्रम
११ मार्च, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। कितना अच्छा होता कि मैं यूरोप-यात्रा कर सकता और वहाँ कितने ही अज्ञात यूरोपीय मित्रोंसे मिल पाता! लेकिन फिलहाल मुझे लगता है कि मुझे भारत नहीं छोड़ना चाहिए। जब मुझे ऐसा लगेगा कि मेरे लिए रास्ता साफ है, तो मैं यूरोप जानेसे झिझकूँगा नहीं। तबतक तो हमें पत्र-व्यवहार द्वारा ही एक-दूसरेके सम्पर्क में रहना होगा। इस समय श्री एन्ड्रयूज या किन्हीं अन्य मित्रोंको भी नहीं भेजा जा सकता। श्री एन्ड्रयूज दक्षिण आफ्रिका में हैं। वे अगले महीने वापस लौटेंगे, लेकिन यहाँ उनके लिए काम पहलेसे ही तैयार रखा है और उसमें वे कई महीनोंतक व्यस्त रहेंगे।

इसमें सन्देह नहीं कि टॉल्स्टॉयकी रचनाओंने मुझपर जबरदस्त असर डाला है। उन्होंने मेरा अहिंसा-प्रेम बढ़ाया है। मैं चीजोंको जितना साफ पहले देखता