गिक, चिकित्सा-सम्बन्धी और संगीतकी शिक्षाका प्रचार-प्रसार करता है—विशेषकर भारतकी सभी जातियों और धर्मोकी गरीब और वयस्क महिलाओंके बीच।
इस संस्थाके उद्भवकी जानकारी देते हुए वे कहते हैं:[१]
जब मैं १९०७-८ में संयुक्त प्रान्तम अकाल-सहायता अभियान में लगा हुआ था, उस समय मेरे मनमें जो एक विश्वास पैदा होता जा रहा था, वह दिन-प्रतिदिन गहरा और तीव्र होता चला गया। वह विश्वास यह था कि भारतको राष्ट्रीय प्रगतिके उन विभिन्न क्षेत्रोंमें, जो हमारी बहनोंके लाभके लिए हैं, प्रशिक्षित और कुशल महिला कार्यकर्त्ताओंकी एक फौजको उतनी ही जरूरत है। जितनी कि निष्ठावान और कुशल पुरुष कार्यकर्ताओंके एक दलकी...परिणामस्वरूप यह तय पाया गया कि छः गरीब विधवाओंको समाजसेवाके कार्यका प्रशिक्षण दिया जाये। इस प्रकार उस छोटे-से बोजने बढ़कर एक विशाल वृक्षका रूप ले लिया है।
इस संस्थाकी आठ शाखाएँ हैं, जो कुल ९४ कक्षाएँ चलाती हैं। इनमें सभी वर्गोंको १,२३४ लड़कियाँ और महिलाएँ शिक्षा प्राप्त करती है। इनमें विधवाओंका अनुपात ४८ प्रतिशत है। विशेष महत्त्वकी बात यह है कि तीन स्त्रियाँ दलित वर्गको भी हैं। इनके अलावा ८ यहूदी, २४ ईसाई और ७ मुसलमान स्त्रियाँ हैं। अब्राह्मण स्त्रियोंका अनुपात ४० प्रतिशत है। सोसाइटीके १३ छात्रावासोंमें २७० महिलाऐं रहती हैं। ९२ स्त्रियाँ नर्सिंग और चिकित्सा शास्त्रकी शिक्षा पा रही हैं। अबतक इसके अधीन १२५ सर्टिफिकेट प्राप्त अध्यापिकाएँ, ४२ पूरी योग्यता प्राप्त नसें, ३१ दाइयाँ, १९ डाक्टर, १७ मैट्रन और गवर्नस, ३० शिल्पाध्यापिकाएँ और ९ संगीत-अध्यापिकाएँ पूरा प्रशिक्षण प्राप्त करके निकल चुकी हैं। संस्थाका दिन-दिन विस्तार हो रहा है। भारत में अपने ढंगको यह सबसे बड़ी संस्था है।
गरीब स्त्रियोंकी जरूरतें पूरी करनेवाली संस्थाके नाते इसमें एक कमी जरूर है। वह है हाथ-कताई और खादीके प्रयोगका अभाव, लेकिन इस मामलेमें श्रीयुत देवधर मेरे दृष्टिकोणसे सहमत नहीं हैं। मैं अनुकूल समयकी प्रतीक्षा कर सकता हूँ। कारण, समय अन्ततः सदा गरीबोंका ही साथ देता है, क्योंकि उनमें असीम धैर्य होता है या उन्हें असीम धैर्य रखना पड़ता है और चूंकि महामन्त्री महोदय (श्री देवघर) का हृदय गरीबोंके साथ है, इसलिए किसी-न-किसी दिन वे देख ही लेंगे कि अगर सेवाके लिए बढ़ाये गये उनके हाथको देशके गरीबसे-गरीब लोगोंतक पहुँचना है तो वह हाथ-कते सूतके जरिये ही पहुँच पायेगा, देखनेमें तो यह रुईका पतला-सा धागा-मात्र है, लेकिन वास्तव में यह इतना मजबूत है कि यह अपने कोमल और प्रेमपूर्ण बन्धनमें करोड़ों भारतवासियोंको बाँध सकता है। इसमें सन्देह नहीं कि कढ़ाईका काम और ऐसे ही जिन अन्य कामोंका प्रशिक्षण सेवासदनमें
- ↑ कुछ अंशोंका ही अनुवाद दिया जा रहा है।