४८४ सम्पूर्ण गांधी वाङमय इसलिए इस प्रश्नका असर ट्रान्सवालमें रहनेवाले ब्रिटिश भारतीयोंपर भी कुछ हदतक पड़ेगा ही । वे यह भी जानते हैं कि गिरमिटिया भारतीय मजदूर लानेके प्रश्नके साथ किस प्रकार स्वतन्त्र भारतीय प्रवासियोंके दर्जेका प्रश्न अत्यधिक मिला दिया गया है, और उनको हानि पहुँचाई गई है। ट्रान्सवालकी सरकारने मानो भविष्यद्रष्टा की भाँति हमें सावधान कर दिया है कि यह गड़बड़ी और भी बढ़नेवाली है । ट्रान्सवालमें पहले "ब्रिटिश भारतीय संज्ञा केवल एक देशके निवासियों के लिए प्रयुक्त होती थी और "एशियाई" शब्द व्यापक रूपसे सारे एशिया-निवा- सियोंके लिए । परन्तु अब “ब्रिटिश भारतीय" का स्थान "एशियाई" ने ग्रहण कर लिया है। अब " एशियाई मामलोंका मुहकमा", "एशियाई व्यवस्थापक, " और "एशियाई बाजार' सबमें 'एशियाई " शब्द प्रयुक्त है। इसलिए चीन से मजदूर लानेसे भारतीयोंके हितोंको अवश्य ही अप्रत्यक्ष हानि पहुँचेगी। खैर, यह जो कुछ भी हो। अभी तो हम इस प्रश्नका विवेचन चीनी दृष्टिकोणसे और व्यापक आम सिद्धान्तोंके अनुसार करना चाहते हैं । " 37 हम पहले ही बता चुके हैं कि चीनी मजदूरोंको यहाँ लानेका विचार जब ट्रान्सवालके धनपति और उनके समर्थक करते हैं, तब वे यहाँके असली बाशिन्दोंको बिलकुल भूल जाते हैं और साथ ही गोरे उपनिवेशवासियोंकी भावी पीढ़ियोंके हितोंको भी भुला देते हैं। इन दोनों दृष्टियोंसे विचार करते हुए तो यह स्थिति बुरी है ही, परन्तु उन गरीबोंके लिए तो बेहद बुरी है जो यहाँ अत्यन्त कष्टदायक शर्तोंपर लाये जायेंगे । धनपति और भी अधिक धन बटोरनेकी और दूसरे लोग एकाएक धनवान बन जानेकी उत्सुकताके कारण क्षण भर रुककर यह सोचना भी जरूरी नहीं समझते कि बेचारे चीनी भी, जिनके साथ पहले ही बहुत दुर्व्यवहार हुआ है, आखिर मनुष्य हैं, और इस नाते उनके सुख-दुःखका भी इन्हें कुछ खयाल करना चाहिए। हम तो यह भी कहते हैं कि चीनियोंके यहाँ आनेपर जो शर्तें लगाई जायेंगी, उनको वे स्वीकार भी कर लें तो भी इतनेसे इन शर्तोंको पेश करनेवालोंकी जिम्मेवारी किसी प्रकार कम नहीं हो जाती, और वह बहुत बड़ी जिम्मेवारी है । ब्रिटिश कानूनों में कुछ करार ऐसे बताये गये हैं कि जिनको करार करनेवाला पक्ष स्वीकार भी कर ले तो भी वे रद माने जाते हैं, या रद माने जाने चाहिए। उदाहरणार्थ, खानोंमें काम करनेवालों या विवाहित स्त्रियों द्वारा किये गये करार । मान लीजिए, एक बदमाश किसीकी छातीपर पिस्तौल तानकर कहता है कि या तो इस कागजपर दस्तखत कर या मैं तेरी जान लेता हूँ; और मान लीजिए, वह मनुष्य अपने दस्तखत दे देता है; तो इन उदाहरणोंमें कानून गरीबकी मददमें आकर खड़ा हो जाता है और कहता है, इन दस्तखतोंका कोई मूल्य नहीं है । इसी प्रकार किसी करारकी पुष्टि करानेके लिए अनुचित दबाव काममें लाया जाता है, तो वह भी रद माना जाता है। एक भूखा आदमी अपनी सारी सम्पत्ति और आजादीको बेच देता है । परन्तु जब कभी वह चाहे वह सब उसे वापस मिल सकती है। इसी प्रकार चीनियोंके लिए बनाये गये शर्तनामेको चाहे कितना ही समझाया जाये, और गरीब चीमी बड़े-बड़े अधिकारियोंके सामने उसे मंजूर भी कर लें, फिर भी हमें यह कहने में कोई झिझक नहीं कि भले ही कानून उसे अनुचित दबाव न भी माने, किन्तु नैतिक दृष्टिसे तो अवश्य ही वह अनुचित दबाव माना जायेगा; क्योंकि हम तो कल्पना भी नहीं कर सकते कि पिछले दिनों ट्रान्सवालमें हुई सभाओंमें जो शर्तें प्रस्तावित की गई हैं, उनको कोई स्वतन्त्र मनुष्य खुशी-खुशी स्वीकार कर सकता है । यह आशा की जाती है कि मजदूर कुछ वर्ष नौकरी करनेका शर्तनामा लिख देंगे। इस अवधि के बाद वे अनिवार्य रूपसे वहीं वापस भेज दिये जायेंगे, जहाँसे वे आये थे । ट्रान्सवालमें आनेपर वे कुछ अहातोंमें बन्द कर दिये जायेंगे, और उन्हें अपने दिमाग, लेखनी, तुलिका या टाँकीका Gandhi Heritage Portal
पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/५२६
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