४८२ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय अधिकारी अथवा नगर-परिषदोंके निर्णयोंपर सर्वोच्च न्यायालय में अपीलकी सुविधा रखिए । ' तब भारतीय कोई विरोध नहीं करेंगे। इससे हमारा मतलब यह नहीं कि भारतीयोंका विरोध- प्रकाश विधान निर्माताओं द्वारा विचारणीय है। हम तो एक सचाई आपके सामने पेश कर रहे हैं, फिर उसका मूल्य जो भी हो। कुछ भी हो, कमसे कम तब अन्याय तो नहीं होगा । तब बाहरके लोग आपके कानूनको कुछ समझ सकेंगे और जिनपर उसका असर होगा उन्हें कमसे कम यह तो ज्ञात हो जायेगा कि वे कहाँ हैं । परवाना अधिकारियोंकी नियुक्तिके बारेमें सर वाल्टर रैगने यह कहा था : न्यायालयको सुझाया गया है कि इस प्रकार नियुक्त अधिकारीका कुछ झुकाव अवश्य ही नगर परिषदकी तरफ होगा, क्योंकि वह स्थायी रूपसे नगर परिषदके मातहत है; इसलिए उसका परिषदका पूर्ण विश्वासपात्र होना आवश्यक है। न्यायाधीश इस मुद्देपर मामलेका फैसला देना नहीं चाहते थे; परन्तु इतना तो समझ सकते थे कि परवाना अधिकारी ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो नगर परिषदकी नौकरीमें न हो और उसका विश्वास पालक भी नहीं हो । नगर परिषदोंको जो सत्तायें दी गई हैं, भूतकालमें उनका दुरुपयोग किस प्रकार हुआ है, इसकी कल्पना न्यायाधीश श्री मेसनके नीचे लिखे उद्गारोंसे हो सकेगी। वे उन दिनों नेटालके उच्च न्यायालय में थे, जिसके सामने ब्रिटिश भारतीयोंकी तरफसे एक अपीलकी सुनवाई चल रही थी। कार्यवाही के दरमियान वे कहते हैं : मैं नगर परिषदकी इस सारी कार्यवाहीको, जिसके विरुद्ध यह अपील है, नगर- परिषदके लिए कलंक मानता हूँ । इस कड़ी भाषाका प्रयोग करनेमें मुझे कोई संकोच नहीं हो रहा है। मेरे मतसे इन स्थितियोंमें यह कहना कि नगर परिषद में अपील की गई थी, सरासर भाषाका दुरुपयोग करना है। हमारे वर्तमान महान्यायवादी (अटर्नी जनरल) ने भी, जो किसी समय नगर परिषदके सदस्य थे, अपने मनके भाव प्रकट करते हुए कहा था : मैं इस बैठक में जानबूझकर इसलिए हाजिर नहीं हुआ, क्योंकि इस तरहकी अपीलोंके बारेमें उसकी नीति कानून-संगत नहीं रही। परिषदके सभ्योंको जो गन्दा काम करनेके लिए कहा गया था, उसे मैंने ठीक नहीं समझा। अगर यहाँके नागरिक चाहते हैं कि परवानोंका जारी करना बन्द कर दिया जाये तो इसका सीधा - सच्चा तरीका यह है कि विधानसभासे भारतीयोंको परवाने देनेके विरुद्ध एक कानून बनवा लिया जाये । परन्तु एक अपील-अदालतके रूपमें मामलोंपर निर्णयके लिए बैठते हुए परिषदको, जबतक इनकारीका कोई खास आधार न हो, परवानोंकी मंजूरी देनी ही चाहिए। सर्वोच्च न्यायालयके अधिकार क्षेत्रसे इस कानूनके पृथक्करणपर और इसके सम्बन्धमें सम्राट्की न्याय परिषदके निर्णयपर टिप्पणी करते हुए हमारे सहयोगी नेटाल ऐडवर्टाइज़रने लिखा है : हम तो इतना ही कह सकते हैं कि सम्राट्की न्याय परिषदके इस निर्णयसे हम अत्यन्त दुःख हुआ । यह ऐसा अधिनियम है जिसकी उम्मीद ट्रान्सवालकी लोक- सभासे भले ही की जा सकती थी, जो विदेशी निष्कासन अधिनियमके मामलेमें उच्च ... Gandhi Heritage Portal
पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/५२४
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