४८० सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय समय अपने-अपने सम्बन्धित स्थानोंमें व्यापार नहीं करते थे उनके लिए हालत अत्यन्त नाजुक है; क्योंकि, यदि वे बाजारों या बस्तियोंमें बलपूर्वक हटाये गये तो इसका अर्थ उनके लिए आम विनाश होगा | प्रिटोरियामें मस्जिदकी जायदाद अभीतक खतरेमें है । सरकारने न्यासियों (ट्रस्टियों) को इसके हस्तान्तरणकी मंजूरी नहीं दी है। यद्यपि नेटाल सरकारने घोषित कर दिया है कि प्लेगकी आखिरी घटना हुए लगभग एक महीना हो गया है, तथापि नेटालसे आनेवाले भारतीयोंपर से जहाजी प्रतिबन्ध अभीतक नहीं उठाया गया है । ऑरेंज रिवर कालोनी भारतीयोंके विरुद्ध अपने द्वार अब भी बन्द किये हुए है । विशुद्ध मजदूर इसके अपवाद हैं; लेकिन वे भी बड़ी कठिनाई और परेशानीके वाद प्रवेश पाते हैं । ये शिकायतें हैं, जिनकी ओर तत्काल ध्यान जाना चाहिए और जिनका निराकरण होना चाहिए। १७ सितम्बर १९३० का इंडियन ओपिनियन साथ बन्द है । [ अंग्रेजीसे ] इंडिया आफिस : ज्यूडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्ड्स, ४०२ । ३४१, विक्रेता-परवाना अधिनियम पुनरुज्जीवित : ३ विधान निर्माताओंसे अपील आपके अर्जदारोंको बहुत दुःखके साथ लिखना पड़ता है कि अपने स्मृतिपत्र में ' उन्होंने जो आशंकायें प्रकट की थीं, वास्तविकताएँ उनसे भी आगे बढ़ गई हैं, और नीचे लिखे मामलेमें न्यायालयने जो व्याख्या की है वह भी उपनिवेशमें बसे ब्रिटिश भारतीयोंके विरोध में गई है। सम्राट्को न्याय परिषद (प्रीवी कौन्सिल) के न्यायाधीशोंका निर्णय यह है कि इस कानूनके अन्तर्गत नगर परिषदों या नगर-निकायोंके निर्णयपर सर्वोच्च न्यायालय में अपील नहीं की जा सकती। इस निर्णयसे भारतीय व्यापारियोंके हाथ-पैर ठंडे हो गये हैं, और उनपर भयंकर आतंक छा गया है। उन्हें भय हो गया है कि पता नहीं, अगले वर्ष क्या होगा। वे अपने आपको बिलकुल अरक्षित मानने लग गये हैं। आपके अर्जदार नहीं जानते कि अगले वर्षका प्रारम्भ भारतीय व्यापारियोंके लिए कैसा होगा; इसलिए हर दूकानदार अत्यन्त चितित है । भयानक दुविधाको स्थिति है । अन्य ग्राहकों -- छोटे दुकानदारों को कहीं परवाने नहीं मिल पाये तो हमारे व्यापारका क्या होगा, इस भयसे बड़े दुकानदार निराश हो गये हैं और अपना माल -- बेचते भी डरते हैं। परवाना जारी करनेवाले अधिकारियोंकी मनमानीपर रोक लगनेकी १. देखिए " पत्र: उपनिवेश सचिवको ", अगस्त १, १९०३ । २. 'प्रार्थनापत्र : चेम्बरलेनको', दिसम्बर ३१, १८९८ । Gandhi Heritage Portal
पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/५२२
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