४७८ सम्पूर्ण गांधी वाङमय कोई संकोच नहीं कि जिस भारतीयके अन्दर दया, प्रेम और सहानुभूतिकी तिलमात्र भी मान- वोचित भावना होगी, और जिसे एकदेशीय बन्धनों और एकरक्तका खयाल होगा वह नेटाल- सरकारकी माँगी कीमतपर अपनी हालत सुधारनेसे साफ इनकार कर देगा । [ अंग्रेजीसे ] इंडियन ओपिनियन, १७-९-१९०३ ३३८. घोर पूर्वग्रह हमें उन शरणार्थी ब्रिटिश-भारतीयोंपर लगी, परेशान करनेवाली प्लेग-सम्बन्धी रुका- वटोंपर फिर लिखना पड़ रहा है, जो वापस ट्रान्सवाल आना चाहते हैं । अब उपनिवेशमें कहीं भी प्लेग नहीं है और आखिरी व्यक्ति आजसे लम्बे अरसे पहले बीमार पड़ा था। फिर भी ट्रान्सवाल सरकारने उपनिवेशको इस बीमारीसे बचाने की चिन्ता (?) के वशीभूत होकर ब्रिटिश भारतीय शरणार्थियोंके प्रवेशपर लगी रुकावट अभीतक हटाई नहीं है। हमने कई बार कहा है कि इस रुकावटकी जड़में न्याय-भावका कहीं लेश भी नहीं है और जितनी जल्दी ट्रान्सवालकी सरकार उन्हें अपने घर लौटने देगी उतना ही उसका और इन शरणार्थियोंका भला होगा ( क्योंकि उनमें से सैकड़ों अपने मित्रोंपर आश्रित हैं) । ब्रिटिश भारतीयोंका शिष्ट- मण्डल जब लॉर्ड मिलनरसे मिला था तब उन्होंने कहा था कि सरकार भारतीयोंके प्रति किसी भी प्रकारका दुर्भाव नहीं रखती। पता नहीं, इस प्लेग-सम्बन्धी रुकावटकी हिमायत में परमश्रेष्ठ क्या उत्तर देंगे । [ अंग्रेजीसे ] इंडियन ओपिनियन, १७-९-१९०३ ३३९. भारतीय कला मैसूर में महाराजाके लिए एक नया प्रासाद बनाया जा रहा है। टाइम्स ऑफ इंडियाने अपने प्रस्तुत साप्ताहिक संस्करणमें उसका बड़ा दिलचस्प वर्णन किया है। हम अपने दक्षिण आफिकावासी भारतीय तथा यूरोपीय पाठकोंके ज्ञान-वर्धनके लिए उसके कुछ अंश अन्यत्र दे रहे हैं। हमारे यूरोपीय पाठक उससे जान सकेंगे कि भारतीय कला क्या है, और यह भी कि, भारत केवल जंगलियोंके झोपड़ोंसे यत्र-तत्र आबाद देश नहीं है, जैसा कि दक्षिण आफ्रिकामें आम तौरपर माना जाता है। जो भारतीय कभी भारत नहीं गये हैं उनको भी यह जानकर राष्ट्रीय गौरव और सन्तोषका अनुभव होगा कि मैसूरके सुसंस्कृत नरेश किस प्रकार भारतीय कलाको प्रोत्साहन देना और उसे अत्यन्त व्यावहारिक रूपमें पुनर्जीवित करना चाहते हैं। टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपे वर्णनसे ज्ञात होगा कि पुश्तोंसे अपनी भिन्न-भिन्न हस्त कलाओंकी शिक्षा पाये हुए परिवारोंके कोई बारह सौ कारीगर अनुभव करते हैं कि कमसे कम मैसूरमें तो उनकी कारीगरीकी कद्र की जाती है, उसका उचित पुरस्कार दिया जा सकता है। कितना अच्छा होता, हम अपने पाठकोंको टाइम्स ऑफ इंडियाका सुन्दर परिशिष्टांक पुनः छापकर भेज सके Gandhi Heritage Portal
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