गुलामसे कॉलेज अध्यक्ष रहा । " ४६९ । जनरल उनका ध्यान न उसे पाँच सौ मीलका फासला तय करना था । " एक रंगदार जातिका मनुष्य होनेके कारण मार्ग में उसे और भी बहुत-सी कठिनाइयोंका सामना करना पड़ा। गोरोंके होटलोंमें उसे ठहरने नहीं दिया जा सकता था। अनेक बार उसे खुले में सोना पड़ा और अपना पेट भरनेके लिए दिन-दिन भर काम करना पड़ा। परन्तु वह कभी झिझका नहीं । अन्तमें वह हैम्प्टन पहुँचा । उसकी सूरत - शकल और कपड़े इतने खराब और गन्दे थे कि उसे शायद ही कोई अन्दर आने देता । परन्तु संस्थाकी व्यवस्थापिकाको लगा कि शायद नौकरकी दृष्टिसे उसका कोई उपयोग हो सके । इसलिए उसे वहाँ रहनेकी इजाजत मिल गई । खाने और पढ़ाईका खर्चा निकालनेके लिए उसने दरबानका, कमरोंकी सफाईका और हर तरहका काम किया। इतना सब काम करके भी कक्षाओंमें अपनी पढ़ाईपर वह परिश्रमपूर्वक पूरा ध्यान देता आर्मस्ट्रॉंग बड़े सहानुभूतिशील पुरुष थे । वहाँ इतने उद्यमी विद्यार्थीकी तरफ जाये, यह असम्भव था। वे उसकी तरफ विशेष रूपसे ध्यान देने लगे । फलतः बुकर संस्थाके सबसे अधिक प्रतिभासम्पन्न विद्यार्थियों में से एक साबित हुआ । इस प्रकार ज्ञान प्राप्त होने पर उसका दृष्टिकोण और भी विशाल बन गया, और गरीबी तथा दूसरी तमाम प्रकारकी कठिनाइयोंसे जूझनेकी नई शक्ति उसे प्राप्त हो गई। अब उसे ऐसा अनुभव होने लगा कि इस ज्ञानका सबसे अच्छा उपयोग यही हो सकता है कि वह अपना जीवन अपने देशभाइयोंकी सेवामें लगा दे और उन्हें भी ऐसा ज्ञान प्राप्त करनेमें मदद करे। इस उच्च उद्देश्यको लेकर बुकरने पहले एक छोटी-सी पाठशाला मालदेन में और बादमें वाशिंगटनमें खोली । परन्तु उसे शीघ्र ही हैम्प्टनसे निमन्त्रण मिला कि वहाँ जाकर वह संस्थामें पढ़नेवाले रेड इंडियनोंको पढ़ानेका काम स्वीकार कर ले। खुद हब्शी होनेके कारण अमरीकी इंडियनोंके साथ व्यवहारमें शुरू-शुरूमें उसे कुछ कठिनाई हुई; परन्तु इसमें उसकी सौम्यता और चतुराईकी विजय हुई और सारा विरोध शान्त हो गया । आज जिसे हम टस्केजीका आदर्श कॉलेज कहते हैं उसकी बुनियाद इस छोटे-से प्रारम्भिक कार्यसे ही पड़ी थी। बुकरके दिलमें एक बात पक्की तरहसे बैठ गई ." हब्शियोंके लिए आज सबसे जरूरी चीज यह है कि व्यापार-व्यवसाय और दस्तकारियों में ऐसे काम सीखें जिससे आर्थिक लाभ हो। वे अच्छे किसान बनें, अपने जीवनमें बचत करना सीखें और फसल घरमें आनेसे पहले जो साहूकार उन्हें अपनी फसलको रेहन रख देनेके लिए ललचाते हैं उनसे बचना सीखें । इस निश्चयको लेकर बुकर टस्केजीके लिए रवाना हुआ और सन् १८८१ में एक मामूली झोंपड़ेके अन्दर उसने अपनी पाठशालाका आरम्भ कर दिया । परन्तु केवल पाठशाला खोल देनेसे थोड़े ही काम चलता है । अन्य अनेक नेताओंकी भाँति उसे इस संस्थाके लिए विद्यार्थी भी ढूंढ-ढूंढ कर लानेका काम करना पड़ा। जैसा हम सोच सकते हैं, उसकी अक्षरज्ञानके साथ औद्योगिक शिक्षाको जोड़ देनेकी बातका लोगोंने शुरू-शुरू में उत्साहसे स्वागत नहीं किया । इसलिए अपनी पद्धतिका लाभ लोगोंको समझानेके लिए उसे जगह- जगह घूमना पड़ा। सुधार और प्रगतिकी इस संघर्षभरी यात्रामें उसे कुमारी ओलीविया डेविड - सनसे बड़ी मदद मिली। इसके साथ आगे चलकर उसने विवाह भी कर लिया । इस यात्राका परिणाम बहुत अच्छा निकला। उसकी बातका लोगोंने स्वागत किया और अब इतने अधिक विद्यार्थी संस्थामें आने लगे कि वहाँ जगहकी तंगी अनुभव होने लगी । परन्तु बुकर - जो अब अपने नामके साथ 'वाशिंगटन' भी लिखने लगा था -- - हारनेवाला नहीं था । उसने कर्ज लेकर सौ एकड़का एक बाग खरीद लिया। अब औद्योगिक शिक्षणकी अपनी कल्पनाको कार्यान्वित करनेका अच्छा अवसर उसे मिल गया। सबसे पहले उसने अपने विद्यार्थियोंको लेकर एक उपयुक्त इमारत खड़ी कर ली। इस काममें मिट्टी भी विद्यार्थियोंने ही खोदी और ईंटें भी " - Gandhi Heritage Portal
पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/५११
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