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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कोपकी पराजय और वाल क्रॉजसे पीछे हटना था। वाहकों और उनके नायकोंको स्पियरमन्स कैम्पसे फीयरतक २५ मील घायलोंको लेकर जाना पड़ा था। और यह नेटालकी सड़कोंपर, जो, आप जानते ही हैं, बहुत ऊबड़-खाबड़ और पहाड़ी हैं। एक बार तो उन्हें एक हफ्ते में १२५ मीलका फासला तय करना पड़ा था। इसके अलावा, हमारे व्यापारियोंने घायलोंके लिए सिगरेट आदि भेजे, जो कि भारतीय आहत-सहायक दलका एक बिलकुल विशिष्ट कार्य था। अनेक यूरोपीयोंने, जिन्हें इन सब बातोंका ज्ञान होना चाहिए, मुझसे कहा है कि भारतीय वाहकों और उनके नायकोंने भोजन तथा आश्रय-स्थलकी ऐसी गंभीर कठिनाइयोंके होते हुए भी घायलोंको लेकर एक-एक दिनमें जो पच्चीस-पच्चीस मीलका फासला तय किया, वैसा कोई भी यूरोपीय दल नहीं कर सकता था।

इतनेसे ही सन्तोष न मानकर, देशभक्तिको भावनासे अधिक सफल ऐकात्म्य स्थापित करने और यह साबित करनेके लिए कि हम' संकटके समय अपने स्थानिक मतभेदोंको भुला लेनेमें पूर्णतः समर्थ हैं, हमारे व्यापारियोंने ६५ पौंड चन्दा इकट्ठा किया और वह डर्बन महिला देशभक्त संघ (डर्बन विमन्स पैट्रिऑटिक लीग) को सौंप दिया । यह एक स्थानिक संघ है, जो घायल सैनिकों ( तथा स्वयंसेवकोंको और स्वयंसेवकोंमें से कुछ तो घोर भारतीय-विरोधी हैं आराम पहुँचानेके लिए बनाया गया है। हमारे व्यापारियोंने घायलोंके लिए कपड़ा भी दिया, जिससे हमारी भारतीय महिलाओंने तकियोंके गिलाफ और रूमाल बना दिये । सारेके-सारे, हजारों, भार- तीय शरणाथियोंका निर्वाह पूरी तरह भारतीय समाजने ही किया। यह एक ऐसा काम था जिसके लिए डर्बनके मेयरने सार्वजनिक रूपसे कृतज्ञता प्रकाशित की और इस वस्तुस्थितिका महत्त्व, इस समय जो-कुछ हो रहा है उसको दृष्टिसे, और भी बढ़ जाता है। शरणार्थी-सहायक समितिको यूरोपीय शरणार्थियोंका भी पर्याप्त निर्वाह करना बहुत कठिन मालूम हो रहा है। लंदन-स्थित केन्द्रीय समिति अबतक बूढ़ों और कमजोरों तथा हृष्ट-पुष्ट मर्दो और औरतों सबको सहायता देती आ रही थी। अब उसने सहायता बन्द कर दी है और इसकी सूचना तार द्वारा भेजी है। जब किम्बले और लेडीस्मिथके छुटकारेकी खुश-खबरी मिली थी तब भारतीयोंने, यूरोपीयोंके साथ-साथ, अपनी दुकानें बन्द करके, उनकी सजावट आदि करके, अपना हर्ष प्रकट किया था। उन्होंने एक सार्वजनिक सभा भी.की थी। सर जॉन रॉबिन्सनको, जो उत्तरदायी शासनमें नेटालके पहले प्रधानमन्त्री थे, अध्यक्षता करनेके लिए निमंत्रित किया गया था और उन मान- नीय महानुभावने बहुत कृपापूर्वक निमन्त्रण स्वीकार किया था। सभा खूब सफल रही। उसमें उपनिवेशोंके सभी हिस्सोंके लगभग १,००० भारतीय एकत्र हुए थे। साठसे ज्यादा प्रमुख यूरोपीय भी शामिल थे।

[अंग्रेजीसे]

इंडिया, १८-५-१९००

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