श्रीमन्,
ट्रान्सवालवासी भारतीयोंकी ओरसे जो पत्र' प्रिटोरिया-स्थित माननीय ब्रिटिश एजेंटको भेजा गया है उसकी एक नकल' मैं इसके साथ नत्थी कर रहा हूँ। तनातनी प्रति घण्टे बढ़ती जा रही है और जब यह पत्र आपके हाथोंमें पहुँचेगा तबतक क्या हो जायेगा, यह कहना कठिन है। परन्तु यदि हमारी सरकार और ट्रान्सवालके बीच कोई समझौता हो तो उसमें भारतीय प्रश्नको किनारे न रख दिया जाये, इसलिए ब्रिटिश भारतीयोंपर असर करनेवाली स्थितिसे आपको अवगत रखना उचित समझा गया है। साथकी नकलसे मालूम हो जायेगा कि ट्रान्सवाल सरकार जोहानिसबर्ग नगर-परिषदके विनियमोंको स्वीकृति देनेमें किस तरह १८८५ के कानून ३ से भी आगे बढ़ गई है। ऐसे विनियम बनाने या भारतीयोंको बस्तियोंमें जमीनके मालिक बननेसे रोकनेका कोई आधार है ही नहीं। तथापि, मुख्य मुद्दा तो वह है, जो ब्रिटिश एजेंटको भेजे हुए पत्रके तीसरे अनुच्छेदमें बताया गया है। अर्थात्, भारतीयोंको बस्तियोंमें हटानेके लिए, कानूनके अनुसार, सफाई-सम्बन्धी कारणोंका अस्तित्व सिद्ध किया जाना जरूरी है। इस विषयमें हस्तक्षेपकी बहुत गुंजाइश है।
गांधीजी द्वारा हस्ताक्षरित अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ३२९५-ए) से।
१. देखिए पत्र : ब्रिटिश एजेंटको" जुलाई २१, १८९९ ।
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