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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


हो गई है। क्या आपको अब भी घरेलू चिन्ताएँ घेरे हैं? आप कानपुरके कांग्रेस अधिवेशनमें शामिल क्यों नहीं हो सके, यह मुझे मालूम हो गया था।

मुझे याद आ रहा है कि हनुमन्तरावने कुछ मास पूर्व एक मित्रके बारेमें मुझे लिखा था। मेरा खयाल है, ये वे ही सज्जन हैं जिनका आपने अपने पत्र में उल्लेख किया है। तबसे उनके बारेमें मुझे कोई और समाचार नहीं मिला।

अपने बारेमें पूरा हाल तथा आन्ध्र देशकी वर्तमान गतिविधियोंके बारेमें मुझे विस्तारपूर्वक अवश्य लिखें।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत कौंडा वैंकटप्पैया गारू
गुन्टूर

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १४०८७) की माइक्रोफिल्मसे।

१८१. पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको

साबरमती आश्रम

९ फरवरी, १९२६

प्रिय सतीशबाबू,

मुझे हेमप्रभा देवीके पत्रके साथ आपके दो पत्र मिले। जो सुत आपने भेजा है वह सचमुच बहुत ही महीन है। यदि उसे बुनवाया जा सके, तो यह एक बहुत बड़ी बात हो जायेगी।

स्वयं बीमारीका शिकार हो जानेके कारण मैं अपने मित्रोंको बीमार पड़नेके विरुद्ध चेतावनी नहीं दे सकता। इसलिए मैं आपसे केवल नम्रतापूर्वक निवेदन करता हूँ कि आप अपने स्वास्थ्यको संभाले रहें। यदि आपका स्वस्थ शरीर चिन्ता या अधिक श्रमके कारण टूट गया तो यह देखकर मैं दुःखी हो जाऊँगा। आपको बहुत ही सावधान रहना होगा और आरामकी जरूरत आ पड़नेपर आराम भी करना होगा।

पिछले बुखारने मुझे अन्य अवसरोंकी अपेक्षा अधिक कमजोर बना दिया है। इसलिए मैं अपने शरीरको पर्याप्त विश्राम दे रहा हूँ। जितना बिलकुल जरूरी है, मैं केवल उतना ही काम करता हूँ; अर्थात् थोड़ा-सा पत्र व्यवहार और थोड़ा-सा सम्पादन।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत सतीशचन्द्र दासगुप्त
खादी प्रतिष्ठान
१७० बहू बाजार स्ट्रीट, कलकत्ता

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १४०८८) की फोटो-नकलसे।