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१७८. पत्र : रायजादा भगतरामको

साबरमती आश्रम

९ फरवरी, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका तार मिला। कल मैंने उसका उत्तर तारसे[१] भेज दिया है।

आप मेरे लिए जो चिन्ता कर रहे हैं उसकी मैं कद्र करता हूँ। मुझे आपके यहाँ रहना पसन्द भी है किन्तु मैं इस लोभका संवरण करूंगा। यद्यपि साबरमतीका मौसम जालन्धरके समान स्फूर्तिदायक नहीं है; किन्तु फरवरी और मार्चमें वह कष्ट- कारक नहीं होता। मुझे इन महीनों में आश्रम में ही रहना। में प्रतिदिन शक्ति प्राप्त कर रहा हूँ और यथासम्भव विश्राम ले रहा हूँ।

अप्रैलमें डलहोजी जानेका विचार आकर्षक है, परन्तु मुझे मार्चके मध्यतक इसके बारेमें अपना अन्तिम निर्णय स्थगित रखना होगा। फिलहाल देवलाली ही जानेका विचार है। पंचगनी ठहरनेका प्रस्ताव भी आया है और अब अल्मोड़ा और श्रीनगरमें भी आमन्त्रित किया जा रहा हूँ। मेरे लिए तत्काल यह निर्णय करना कठिन है कि स्वास्थ्यकी दृष्टिसे कहाँ जाकर ठहरना सबसे अधिक फायदेमन्द होगा। साथ ही मैं आपसे यह हरगिज नहीं कहूँगा कि आप डलहौजीमें अपना घर मेरे लिए रोके रहें। यदि इस बीच किसी मित्रको उसकी आवश्यकता हो या स्वयं आपको ही उसकी जरूरत पड़े, तो आप उसे देने या उसका उपयोग करनेमें संकोच न करें। जब निर्णय करनेका अवसर आयेगा, तब देखा जायेगा। मिल गया तो ठीक, न मिला तो भी ठीक।

हृदयसे आपका,

रायजादा भगतराम, बार-एट-लॉ
जालन्धर सिटी

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १४०८५) की फोटो-नकलसे।

  1. १. उपलब्ध नहीं है।