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पत्र : डी० वी० कालेको

 

आपके सबसे ताजे लेखमें मैंने कुछ काट-छाँट की है। आप उसे देख लें और जो परिवर्तन मैंने किये हैं उनपर अपनी राय दें।

श्रीयुत च० राजगोपालाचारी
गांधी आश्रम
पुडुपालयम,
तिरुच्चङ्गोड

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १४०८३) की फोटो-नकलसे।

१७७. पत्र : डी० वी० कालेको

प्रिय मित्र

आपका पत्र मिला। यद्यपि मेरी इच्छा आपको यहाँ रखनेकी है किन्तु मेरे सामने एक कठिनाई है। इस समय मैं थोड़ा-बहुत बीमार हूँ। मैं आश्रम आपको अपने पास नहीं रख सकूँगा। किसी भी साहित्यिक महत्त्वाकांक्षा या अभिरुचिको सन्तुष्ट करना बड़ा कठिन होता है।

आश्रम एक ऐसा स्थान है जो विशेषकर शारीरिक श्रमके उद्देश्यसे बनाया गया है। इसलिए आप यहाँ निरन्तर किये जानेवाले शारीरिक परिश्रमसे मसलन पाखाना-सफाई, बुनाई, कताई, धुनाई आदिसे सन्तुष्ट नहीं होंगे। फिर प्रोफेसर बीजापुरकरकी इच्छा और अनुमतिके बिना मेरे लिए आपको यहाँ भरती करना किसी प्रकार भी सम्भव नहीं होगा।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत डी० वी० काले
मन्त्री,
नूतन महाराष्ट्र विद्या प्रसारक मण्डल
तलेगाँव (दाभाड़े)

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १४०८४) की माइक्रोफिल्मसे।