पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 29.pdf/४६७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

१७५. पत्र : नरगिस डी० कैप्टेनको

साबरमती आश्रम

९ फरवरी, १९२६

चूंकि मुझे एक अच्छे आशु-लिपिककी सहायता मिल गई है, इसलिए मैं आजसे अपने पत्र-व्यवहारमें और अधिक तत्पर रहूँगा। इस समय में कितना विश्राम ले रहा हूँ यह जानकर आपको खुशी होगी। सुबह प्रार्थनाके लिए उठने के बाद मैं शाम तक तीन बार सोता हूँ और जहाँतक सम्भव होता है बिस्तरपर लेटा रहता हूँ, बहुत कम लोगोंसे मिलता हूँ, 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया के लिए जो आवश्यक होता है वही लिखता हूँ तथा उन्हीं पत्रोंका उत्तर देता हूँ जिनके जवाब लिखना निहायत जरूरी होता है। शामकी प्रार्थनाके बाद कोई काम नहीं करता। धीरे-धीरे शक्ति आ रही है। मौसम ठण्डा और सुहावना है। इसलिए मेरे बारेमे चिन्ता करने- की आवश्यकता नहीं।

मैं चाहता हूँ कि कश्मीर जानेकी बात आप अन्तिम रूपसे स्वीकार कर लें और वहां जरूर जायें और बम्बईमें फिर काम सम्हालने से पहले अपना स्वास्थ्य ठीक कर लें। इसलिए कृपया जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी आप कश्मीर पहुँच जायें। यह जाननेपर कि आपका सिरदर्द पूरी तरहसे चला गया है और आपमें अपने कठिन भावी कार्यक्रमका बोझ उठाने के लिए पर्याप्त सामर्थ्य आ गया है, मुझे प्रसन्नता होगी।

आप, मिठूबहन तथा जमुनाबहनके लिए मैं बहुतसी योजनाएँ बना रहा हूँ, किन्तु जबतक आप स्वस्थ नहीं हो जाती तबतक उनपर अमल करना सम्भव नहीं।

मीराकी जिस बदनामीका मैंने उल्लेख किया था वह लन्दनके 'संडे क्रॉनिकल' में छपी थी और इंडियन डेली मेल'ने उसे उद्धृत किया था। मीराने इसका साहस- पूर्ण और समुचित उत्तर दिया है। कहनेकी जरूरत नहीं कि 'बदनामी' शब्द अतिशयोक्तिपूर्ण है, किन्तु मेरा खयाल था कि वह अभद्रता आपकी नजरोंमें भी आई होगी और इसलिए मेरा आशय आपकी समझमें आ गया होगा।

क्या आपने वह सारी खादी जो मैं छोड़ आया था, ठिकाने लगा दी है ?

श्रीमती नरगिस कैप्टेन
भुज (कच्छ)

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १४०८२) की माइक्रोफिल्मसे।