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हिन्दू धर्मकी स्थिति
होता है। कुछ हिन्दुओंको मांस खानेवालोंके हाथसे शुद्ध जल ग्रहण करनेमें कोई एतराज नहीं होता, लेकिन गोमांस खानेवाली जातियोंके हाथका पानी लेनेमें उन्हें बहुत एतराज होता है।...
यदि अन्त्यज लोग मुर्दार मांस खाना और अन्य लोग गोमांस खाना छोड़ दें तो अस्पृश्यता निवारणका कार्य आसान हो जायेगा और फिर उनके हायका छुआ साफ पानी पीनेमें भी कोई एतराज न होगा। आप गुजरातके अन्त्यजोंकी एक परिषद् लाकर उनसे इतना करा सकें और उन्हींकी कौमके कुछ नेता इतना सुधार एकदम कर देनेके लिए कमर कस लें तो कितना अच्छा हो ?

इस पत्रमें केवल एक पक्षीय दलीलें ही पेश की गई हैं। लेखककी इस शिकायतमें गुंजाइश तो है। हिन्दू धर्म एक जीवित धर्म है। उसमें चढ़ाव और उतार होते ही रहते हैं। वह संसारके नियमोंका ही अनुसरण करता है। मूलमें वृक्ष तो एक ही है; लेकिन उसकी शाखा-प्रशाखाएँ विविध है। उसपर ऋतुओंका असर होता है। उसमें वसन्त भी होता है और पतझड़ भी; शरऋतु भी होती है और ग्रीष्म ऋतु भी। वह वर्षासे भी अप्रभावित नहीं रहता। उसके लिए शास्त्र हैं और नहीं भी हैं। उसका आधार एक ही धर्मपुस्तक नहीं है। 'गीता' सर्वमान्य है; लेकिन वह केवल मार्गदर्शिका है। रूढ़ियोंपर उसका असर बहुत कम होता है। हिन्दू धर्म गंगाका प्रवाह है। वह मूलमें शुद्ध है। उसमें मार्गमें मलिनता आती है, फिर भी जिस प्रकार गंगाकी प्रवृत्ति अन्तम पोषक है उसी प्रकार हिन्दू धर्मकी प्रवृत्ति भी अन्ततः पोषक है। हरएक प्रान्तमें वह प्रान्तीय स्वरूप ग्रहण करता है, फिर भी उसमें एकता तो है ही। रूढ़ि धर्म नहीं है। रूढ़िमें परिवर्तन होगा; लेकिन फिर भी धर्मसूत्र तो वैसे- के वैसे ही बने रहेंगे।

हिन्दू धर्मकी शुद्धता हिन्दुओंकी तपश्चर्यापर निर्भर करती है। जब-जब इस धर्मपर संकट आया है, तबतब हिन्दू धर्मावलम्बियोंने तपस्या की है, उसकी मलिनताके कारण ढूंढे हैं और उनका निदान किया है। उसके शास्त्रों में वृद्धि होती ही रहती है। 'वेद','उपनिषद्','स्मृति','पुराण' और इतिहासादिका एक साथ एक ही समय में सृजन नहीं हुआ है; बल्कि प्रसंग आनेपर ही विभिन्न ग्रन्थोंकी सृष्टि हुई है। इसलिए उनमें परस्पर विरोधी बातेंतक मिल जाती हैं। उनमें शाश्वत सत्य नहीं वरन् उनके समयमें शाश्वत सत्यका आचरण किस प्रकार किया गया था यही बताया गया है। उस समय जैसा आचरण किया गया था वैसा ही आचरण दूसरे समयमें भी किया जाये तो हम निराशाके कूपमें ही जा गिरेंगे। एक समय हमारे यहाँ पशु-यज्ञ होता था; क्या इसलिए आज भी करें ? एक समय हम मांसाहार करते थे, इसलिए क्या हमें आज भी वैसा करना चाहिए ? एक समय चोरोंके हाथ-पैर काट डाले जाते थे; क्या हम आज भी उनके हाथ-पैर काटें ? एक समय हमारे यहाँ बहुपति प्रथा थी, क्या आज भी उसे रखा जा सकता है ? एक समय हम नन्हीं-नन्हीं बालिकाओंका