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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
अभी मुझे बायें हाथसे ही लिखना पड़ता है।
बापूके आशीर्वाद
अ० सी० सुकन्या नाजुकलाल चौकसी
भाटिया गली
बड़ोदा।
गुजराती पत्र (एस० एन० १२११५-अ) की फोटो-नकलसे।
१७१. हिन्दू धर्मकी स्थिति
एक भाई 'सनातनी हिन्दू' के उपनामसे लिखते हैं:[१]
- आज हिन्दूधर्मकी स्थिति जितनी विषम है, उतनी ही विचित्र भी है। कट्टर हिन्दू शास्त्रोंके अनुसार चलनेका दावा करते हैं किन्तु ऐसा नहीं लगता कि कोई शास्त्र पढ़ता भी है। रूढ़ियाँ कौन-सी कट्टर सनातनी हैं इसके विषयमें कुछ नहीं मालूम। सनातन रूढ़ि क्या है ? इस सम्बन्धमें भी हर प्रान्तकी कल्पनाएँ अलग-अलग हैं। सामाजिक धर्माचारका व्यापक अध्ययन कोई नहीं करता।... यदि आज हिन्दू प्रथाओंका कुछ अध्ययन कोई करता है तो यहाँके यूरोपीय हाकिम या पादरी।
- हिन्दुओं में सभी अपने प्रान्तके रिवाजको ही रूढ़ हिन्दू धर्म समझते इसका एक उदाहरण लें। आप कहते हैं कि अस्पृश्यता निवारणके बाद अस्पृश्योंकी स्थिति शूद्रोंके समान रहेगी।... पर क्या शूद्रोंकी स्थिति सब जगह एक समान है ? जिन प्रान्तोंमें ब्राह्मण भी मांसाहार या मत्स्याहार करते हैं, वहाँ शूद्रों की एक प्रकारकी स्थिति है, जहाँ ब्राह्मणेतर दूसरे सवर्ण मांस-मत्स्यका सेवन करते हैं वहाँ शूद्रोंकी स्थिति दूसरे प्रकारको है; और जिन प्रान्तोंमें ब्राह्मणोंके साथ वैश्यादि दूसरे वर्ण भी निरामिष हैं वहाँकी स्थिति तीसरे ही प्रकारकी है। आपने एक स्थानपर लिखा है, शूद्रोंके हाथका पानी पीनेमें अन्य वर्णोंको कोई ऐतराज नहीं होता तो अन्त्यजोंके हाथका पानी पीने में भी उन्हें कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए।
- अब जहाँ कितने ही हिन्दू मांसाहार करनेवालोंके हाथका पानी न लेनका आग्रह रखते हैं वहाँ तिरस्कारको अपेक्षा धार्मिक पवित्रताका विचार ही प्रधान
- ↑ १. अंशत: उद्धृत।