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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

उन्होंने बतलाया कि खेतीके काममें लगे हुए लोगोंके लिए खाली समयमें चरखा ही एकमात्र अतिरिक्त धन्धा है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर राष्ट्रके लोगोंकी पसन्दगी विकृत न हो गई होती और उनकी रुचि पतनशील न हो गई होती तो खद्दरने अबतक जितनी प्रगति की है उससे कहीं ज्यादा कर चुकी होती। चरखेसे होनेवाली आमदनीके सम्बन्धमें श्री मैकीने कहा :

ध्यानपूर्वक हिसाब लगाकर देखा गया है कि २॥ घंटे प्रतिदिन सुत कातकर एक आदमी आसानीसे हर महीने २॥ रुपया कमा सकता है। यदि एक परिवारमें औसतन ५ आदमी हों और उनमें से दो ही प्रतिदिन २॥ घंटे सूत कातें तो राज्यमें इन बेकारोंकी कुल अतिरिक्त आमदनी ५० लाख रुपये माहवार या ६ करोड़ रुपये सालानासे अधिक होती है। क्या चरखके आलोचकोंने उनसे यह गम्भीरतापूर्वक कहा कि वे कताईको न अपनाकर इस रकम-को गँवा दें ? इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि कताई उद्योगका भविष्य महान् है और यदि पढ़े-लिखे, सभ्य और धनी लोग खद्दर पहनना शुरू कर दें तो इस उद्योगको बहुत प्रोत्साहन मिलेगा।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, ४-२-१९२६

१६८. मथुरादास त्रिकमजीको लिखे पत्रका अंश

४ फरवरी, १९२६

कूड़ेके ढेरपर जा बैठने प्रयत्नमें[१] कई बार मात खा चुकनेके बाद तुम्हें इस बार जो विजय मिली है, उसपर बधाई चाहिए तो इसीको बधाई मान लेना।

[गुजराती से]

बापुनी प्रसादी,

  1. १. बम्बई नगरनिगमके चुनाव संघर्ष में।