पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 29.pdf/४५७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४३१
शराबबन्दी


कमाईसे —— शराब इत्यादिसे प्राप्त होनेवाला राजस्व पापकी कमाई नहीं तो क्या है ? —— अपने बच्चोंको शिक्षा देनेसे हम अवश्य इनकार करते।

श्री फर्ग्युसन इस पापसे आमदनी करनेके बजाय नया कर चालू करनेका सुझाव देते हैं। मेरी रायमें तो यह सरकार अपने बड़े भारी सैनिक व्ययको, जिसकी आव श्यकता आक्रमणोंसे देशकी रक्षा करनेके लिए नहीं बल्कि आन्तरिक बलवोंको कुचल देनेके लिए है, घटा दे तो नया कर लगाने की कोई आवश्यकता न रहेगी। इसलिए मद्यपान निषेधकी माँगके साथ-साथ सैनिक व्ययमें उतनी ही कमी करनेकी मांग भी पेश करनी चाहिए। यदि मिशनरी लोग जनताकी रायका साथ देनेको कटिबद्ध हो जायें और मद्यपानको एकदम बंद कर देनेपर जोर देने लगे तो उन्हें सैनिक व्ययका भी अध्ययन करना होगा। जब उन्हें यह सन्तोष हो जाये कि बहुत-सा खर्च तो आन्तरिक झगड़ोंके झूठे भयके कारण ही बढ़ाया गया है तो उन्हें भी लश्करी वर्चको कम करनेपर जोर देना होगा, कमसे-कम उतना खर्च कम कराने के लिए तो अवश्य ही प्रयत्न करना होगा जितना कि नशीली चीजोंके महसूलसे वसूल होता है।

स्वराज्य दल और दूसरे राजनैतिक दलोंका कर्त्तव्य बिलकुल स्पष्ट है। वे एक स्वरसे शराबखोरीको एकदम और पूर्णरूपसे बन्द कर देने की माँग पेश करने के लिए देशके प्रति कर्तव्यबद्ध हुए हैं। यदि यह मांग पूरी न की जाये तो स्वराज्य दलको सरकारको दोषी ठहरानेका एक अतिरिक्त कारण मिलेगा। श्री राजगोपालाचारीने उचित हो कहा है कि शराबखोरीको एकदम रोक देना जनताको राजनैतिक शिक्षा. देनेकी दिशामें प्रथम श्रेणीका कार्य है, और यह ऐसा कार्य है कि इसमें सभी दलों, जातियों और राष्ट्रोंके लोग आसानीसे एक होकर काम कर सकते है।

यह लिखने के बाद मैंने दीवान बहादुर एम० रामचन्द्ररावकी अध्यक्षता में शराब- खोरीको बन्द करनेके उद्देश्यसे दिल्ली में आयोजित सभाकी कार्यवाहीका वर्णन पढ़ा। उस सभाने जो प्रस्ताव किया है वह मेरी रायमें बुजदिलीसे भरा प्रस्ताव है। उसमें बुजदिली दिखानेके पश्चात् भारत सरकार और प्रान्तीय सरकारोंसे प्रार्थना की गई है कि वे आबकारी विभागकी नीतिके तौरपर शराबखोरीको एकदमं बन्द कर देना अपना ध्येय बनायें। मेरे खयालसे भारत सरकार और स्थानिक सरकारोंको भी इसको स्वीकार करनेमें कोई मुश्किल न मालूम होगी। सभी दलोंका, भारत सरकारका भी, अन्तिम ध्येय स्वराज्य है, लेकिन कांग्रेसके लिए तो वह शीघ्र ही प्राप्तव्य वस्तु है। और भारत सरकारके खयालमें तो वह काम्य होकर भी सुदूर भविष्यतक में अप्रा- प्तव्य ध्येय ही है। तब फिर सरकार शराबखोरीको बन्द कर देना भी असम्भव ही मानेगी। इसी प्रस्तावके अनुकूल उस सभाने सरकारको यह सलाह दी है : “वह इस विषयमें लोगोंकी राय जाननेके लिए पूरी सुविधा कर दे और सभाकी रायमें स्थानिक शराबबन्दीके कानूनको दाखिल करना ही इस विषयमें लोगोंकी राय जानने- के लिए उत्तम उपाय है।” जैसा कि मैंने ऊपर कहा है लोगोंकी राय मालूम करनेकी कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि जनताकी राय तो सभी जानते हैं। प्रश्न यह है कि सरकार आबकारीकी आमदनीको छोड़ देनेको तैयार है या नहीं। अच्छा होता यदि सभाने अधिक दृढ़तासे, अधिक विवेकपूर्ण रीतिसे और अधिक संगत कार्य