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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


कगारपर जा पहुँचते हैं और कभी-कभी तो खड्डेमें भी जा गिरते हैं। भारतवर्ष तो आज भी गरीब देश है। उसके पास पूंजी स्वल्प है, शिक्षा भी बहुत कम है, स्वच्छता और सार्वजनिक स्वास्थ्यको दृष्टिसे भी वह पिछड़ा हुआ है; रहनेके मकानों, खेती-बाड़ी, उद्योगधंधा, तथा गाँवोंमें यातायात सम्बन्धी साधन —— इन सभी बातोंमें वह गरीब है।... यह देश नशीली चीजोंका इस्तेमाल करनेका व्यय नहीं उठा सकता। उसकी वित्त व्यवस्थाके विषयमें हकीकत यह है कि देशके बाहर प्रतिवर्ष जानेवाली दौलत उसकी कमर तोड़ रही है। हम नहीं जानते कि इस सम्बन्धमें कितना धन बाहर चला जाता है लेकिन राजस्वके रूपमें सरकार जितना रुपया नशीली वस्तुओंसे वसूल करती है, उसपर- से कुछ अन्दाज लगाया जा सकता है। नशीली चीजोंके राजस्वकी कुल रकम ८०,००,००,००० रु० ही मान ली जाये तो भी अनुचित न होगा। यदि यह मान लें कि नशीली वस्तुओंकी कीमतका आधेसे अधिक भाग मजदूर वर्गों तथा गरीब लोगों द्वारा अदा किया जाता है तो लगभग ६० करोड़ रुपयोंका बोझ उन्हें वहन करना पड़ता है। उन्हीं लोगोंकी आमदनीमें से यह लिया जाता है जिन्हें अपनी, अपने कुटुम्बकी या जातिकी उन्नतिके लिए रुपयोंकी बड़ी आवश्यकता रहा करती है। यदि इतनी बड़ी रकम प्रतिवर्ष नशीली चीजोंमें खर्च होनेसे बचाई जाये, और उसको घरकी स्थिति सुधारने और राष्ट्र निर्माणके मदोंमें खर्च किया जाये तो भारतवर्षके गरीब लोगोंको स्वावलम्बी बनाने दिशामें क्या नहीं किया जा सकता है ?...

आर्थिक हानिकी अपेक्षा नैतिक हानि तो और भी अधिक होती है। नशीली चीजोंके उपयोगसे उनका सेवन करनेवालों तथा उनका व्यापार करनेवालों - दोनोंका अधःपात होता है। मद्यपानका व्यसनी व्यक्ति, माता, बहन और पत्नीका भेद भूल जाता है और अपराध कर बैठता है कि जिसके लिए यदि वह होशमें होता तो वह शर्मसे गड़ जाता। जिन लोगोंका मजदूरोंके साथ कुछ भी सम्बन्ध है वे जानते हैं कि जब मजदूर शराबके नशेमें चूर हो जाता हैं तब उसकी हालत कैसी हो जाती है। दूसरे वर्ग भी कुछ अच्छे नहीं हैं। मुझे मद्यपान करनेके अनन्तर अपनेको बुरी तरह भूल जानेवाले एक जहाजके कप्तानकी बात याद है। उस समय जहाजकी देखरेख उसके नीचे काम करनेवाले अधिकारीको सौंप देनी पड़ी थी। बैरिस्टर लोग भी शराब पी चुकनेके पश्चात नालियोंमें पड़े पाये गये हैं। संसारमें सब जगह पुलिसके द्वारा इन अच्छी स्थितिके लोगोंकी रक्षा की जाती है; और बेचारे गरीब शराबीको उसकी गरीबीके कारण सजा मिलती है।

यदि शराबखोरीकी बुराईको अनेक हानियोंके होते हुए भी अंग्रेजोंमें फैशनेबिल दुर्गुण न माना जाता तो आज इस गरीब देशमें उसे हम इस संगठित हालतमें न पाते। यदि हम लोग सम्मोहक शक्तिके वशीभूत न किये गये होते तो आज पापकी