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सत्याग्रहाश्रमका न्यासपत्र


पीछे न घूमें श्रेयसका ही खयाल करें और वह प्रेय न हो तभी करते रहें उसका अन्तिम परिणाम बड़ा हि अच्छा होगा इसमें शक नहि।

आपका,

मोहनदास गांधी

मूल पत्र (जी० एन० २१८) की फोटो-नकलसे।

१६४. सत्याग्रहाश्रमका न्यासपत्र[१]

२ फरवरी, १९२६

२,७५,००० रुपयेके न्यासकी घोषणा।

हम, मोहनलाल करमचन्द गांधी तथा मगनलाल खुशालचन्द गांधी जो दोनों जातिसे बनिये हैं, क्रमश: लगभग ५५ तथा ४३ वर्षकी आयुके हैं, दोनों बुनाई तथा खेतीका धन्धा करते हैं और सत्याग्रहाश्रम वाडज, ताल्लुका उत्तर दसकरोई, जिला अहमदाबादके निवासी हैं, इस दस्तावेजके द्वारा घोषणा करते हैं कि :

हमने तथा हमारे साथियोंने मिलकर सन् १९१५ में दक्षिण आफ्रिकासे हिन्दुस्तान- में आने के बाद सेवा करनेकी इच्छासे तारीख २५-५-१९२५ को सत्याग्रहाश्रम नामकी संस्थाकी स्थापना की थी। इस संस्थाकी मिल्कियत, जो इसके साथकी अनुसूची 'अ'[२] में हमारे द्वारा सूचित की गई है, और जो जमीन तथा मकान मिलाकर लगभग रु० २,७५,००० (दो लाख पचहत्तर हजार रुपया) मूल्यकी है, हमारे नामपर उक्त संस्थाकी ओरसे खरीदी गई थी। और उसका प्रबन्ध तथा उपयोग उक्त संस्थाके प्रमुख लोगों के आदेशानुसार संस्थाके उद्देश्यों की पूर्तिके निमित्त किया जाता रहा है और अब भी किया जाता है। इस दस्तावेजके द्वारा हम उन उद्देश्योंको व्यक्त करते हैं और घोषणा करते हैं कि हमारे नामपर यह मिल्कियत संस्थाके न्यासियोंकी हैसियतसे है और इसमें हमारा अथवा हमारे वली-वारिसोंका कोई भी निजी अधिकार थवा हिस्सा न कभी था और न है।

इस दस्तावेजकी अनुसूची 'अ' में बताई गई सत्याग्रहाश्रमकी मिल्कियतका जिन उद्देश्योंके लिये उपयोग किया जाता है वे निम्नलिखित हैं:

१. अन्त्यजोंकी उन्नति;

२. कपासकी खेती और उससे सम्बन्धित कलाओं तथा हाथसे कपास लोढ़ने, रूई पींजने, सूत कातने तथा कपड़ा बुननेकी कलाओंका विकास करना;

  1. १. यह न्यासपत्र १२-२-१९२६ को प्रातः ११ और १२ बजेके बीच अहमदाबादके उप-पंजीपकके कार्यालय में पंजीयनके लिए गांधीजीने पेश किया था और पुस्तक सं० १ में क्रम संख्या ७२२ में पंजोषित किया गया था। इसपर ग० वा० मावलंकर तथा विनोबा भावेने गवाहोंके रूप में हस्ताक्षर किये थे।
  2. २. देखिए परिशिष्ट २।