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१५९. दक्षिण आफ्रिकाका प्रश्न

मुझे अफसोसके साथ यह कहना पड़ता है कि दक्षिण आफ्रिकामें उत्पन्न अत्यन्त गम्भीर स्थितिके सम्बन्धमें लॉर्ड रीडिंगके अभिवचनने मेरे मनमें कोई आशा उत्पन्न नहीं की। वे अपनी कूटनीतिके किसी हथकण्डेसे संघ संसदके वर्तमान सत्रमें उस विधेयकपर किये जानेवाले विचारको स्थगित करा सकते हैं; लेकिन आफ्रिकासे हाल ही में आये हुए तारसे मालूम होता है कि जिस कठोर सत्यका हमें सामना करना है वह यह है कि दक्षिण आफ्रिकामें सरकार अभीसे उस ढंगसे पेश आ रही है मानो वह विधेयक भूमि-सम्बन्धी कानून बन चुका हो; और वहाँ परवानेतक बदले नहीं जा रहे हैं। यह विधेयक जिस सिद्धान्तपर आधारित है वह स्वयं अन्यायमूलक है। मेरे खयालमें लॉर्ड रीडिंग जिस बातका प्रयत्न कर रहे हैं वह है, विधेयककी छोटी- मोटी बातोंमें कुछ रद्दोबदल कराना; वे लोग तत्वतः उसमें कुछ भी परिवर्तन न होने देंगे। तत्व है, वहां रहनेवाले भारतीयोंको १९१४ के समझौतेके अनुसार प्राप्त हकोंका कम किया जाना। उस लम्बे और जबर्दस्त संघर्षके बाद १९१४ के समझौतेका मूल आधार था कि निर्योग्यताएँ बढ़ाई नहीं जायेंगी, बल्कि यह स्पष्ट था कि भारत- वासियोंका मनमानी संख्या में वहाँ आते रहना सदाके लिए बन्द हो जानेपर वहाँके भारतीय निवासियोंकी स्थितिको धीरे-धीरे लेकिन दृढ़तासे बेहतर बनाया जायेगा। भारतीयोंके वहाँ आते जानेका भय १९१४ में ही दूर हो गया सो बात नहीं है। वह भय तो तभी समाप्त हो चुका था जब नेटालने अपना आव्रजन कानून पास किया था और केपकी सरकारने भी अपने यहां वही कानून पास कर लिया था। ट्रान्सवालमें तो भारतीयोंकी संख्या कभी अधिक ही नहीं थी। ऑरेंज फ्री स्टेटमें भी भारतीयोंकी बस्ती लगभग शून्य ही थी। लेकिन जनतन्त्रात्मक सरकारके अन्तर्गत लोगोंके दिल एक बार उत्तेजित हो उठनेपर किसी-न-किसी प्रकारसे उसे उन्हें सन्तुष्ट अवश्य करना पड़ता है। दक्षिण आफ्रिकाके सभी राजनीतिज्ञोंने लोगोंकी भावनाओंको उभार दिया था और सच कहा जाये तो वे सब इस प्रश्नका स्वयं अध्ययन किये बिना ही उस उत्तेजनाको बढ़ाते रहते थे। किन्तु जब सरकारने आव्रजन सम्बन्धी प्रतिबन्धपर अंकुश लगानेके लिए एक बहुत सख्त कानून बनाकर उनके इस भयको दूर कर दिया तो वहाँ बसे हुए भारतीयोंको यह आशा रखनेका पूरा हक हो गया कि जैसे-जैसे समय बीतता जायेगा उनकी स्थिति तो सुधरती ही जायेगी। लेकिन दीख ऐसा पड़ रहा है कि यह नहीं हुआ। १९१४ से आजतकका इतिहास यही बताता है कि भारतीयों के अधिकारोंपर एकके बाद एक आक्रमण करना बन्द नहीं हुआ। यदि लॉर्ड रीडिंग अपना फर्ज अदा करना चाहते हैं तो उन्हें सिर्फ उस विधेयकके पेश किये जानेके विचारको ही मुल्तवी नहीं करवाना चाहिए बल्कि कमसे-कम इस बातका आग्रह करना चाहिए कि भारतीयोंको फिरसे १९१४ की सुविधायें प्राप्त हों; वैसे स्थिति तो