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१५६.चरखा बनाम मिल

एक हिन्दी अध्यापकने एक लम्बा पत्र लिखा है। यह पत्र गुजरातीके पाठकोंके लिए भी विचारणीय है, अतः मैं उसे यहाँ सार रूपमें देता हूँ :

क्या भारतको स्वराज्य मिलनेके बाद भी आप अपनी चरखेकी प्रवृत्ति जारी रखेंगे ? क्या उस वक्त देशी कारखाने अपने-आप न बढ़ जायेंगे ? और तब उनका माल इतना सस्ता पड़ने से चरखेकी प्रवृत्तिको धक्का नहीं पहुँचेगा ? और अन्त में विलायती कपड़ेका बहिष्कार मिलों ही से होगा; इस- लिए आप जो चरखेके द्वारा गाँवोंकी भूख मिटाना चाहते हैं, क्या वह उद्देश्य ज्योंका-त्यों कल्पनामें ही न रह जायेगा ? अथवा स्वराज्यमें उनके द्रयके मिटानेका कोई दूसरा उपाय ढूंढ़ लिया जायेगा ? यदि ऐसा ही होनेकी सम्भावना हो तो आप चरखेकी प्रवृत्तिके पीछे जो विराट् प्रयत्न कर रहे हैं, उस प्रयत्नको अभीसे मिलोंकी संख्या बढ़ाकर विदेशी वस्त्रोंके बहिष्कारको सफल करने में क्यों न लगायें ? यदि आप यह मानते हों कि स्वराज्य मिलनेके बाद चरखेकी प्रवृत्ति बन्द ही हो जानेवाली है, और यह प्रवृत्ति दस पन्द्रह बरस तो चलनी ही चाहिए, तो फिर उतने समयमें नई मिलें खड़ी करके क्या एकदम बहिष्कार नहीं किया जा सकता ?

इस दलीलका उत्तर 'नवजीवन' में कभी-न-कभी तो आ ही गया है, फिर भी यदि एक ऐसे विद्वान् सज्जनको भी जो 'यंग इंडिया' और 'नवजीवन' के नियमित पाठक हैं, आज भी शंका उत्पन्न होती है, तो उसके उत्तरमें उस प्रश्नपर विचार कर लेना में निरर्थक नहीं मानता।

मेरा दृढ़ विश्वास है कि स्वराज्य मिलने के बाद भी चरखेकी प्रवृत्ति तो जारी ही रहेगी। चरखेकी प्रवृत्तिका मूल गाँवों में है। स्वराज्य मिलने के बाद भी किसानोंको खेतीके सिवा दूसरे उद्योगकी आवश्यकता रहेगी। वह उद्योग इस देशमें तो केवल चरखा ही हो सकता है। स्वराज्य मिलनेके बाद मिलें बरसातके दिनों में रातभरमें जगह-जगह फूट निकलनेवाले कुकुरमुत्तोंकी तरह नहीं फूट निकलेंगी। मिलें खोलनेके लिए पूँजी चाहिए। पूंजीवालोंको ब्याज चाहिए। उनके लिए खास सुभीतेकी जगह चाहिए, बिजली और पानी वगैराकी सुविधाएँ चाहिए, मजदूर चाहिए, और करघे चाहिए। ये साधन चरखेकी तरह फूंक मारनेसे उत्पन्न नहीं हो सकते। यदि बहुतसे लोग निश्चय कर लें तो आज हिन्दुस्तानमें १ करोड़ चरखे एक दिनमें तैयार हो सकते हैं। लेकिन ३० करोड़ आदमी चाहें तो भी ३० करोड़ तकुओंकी मिल एक दिनमें खड़ी नहीं कर सकते और अनुभवसे इतना तो सिद्ध हो ही गया है कि मिलका एक तकुआ जितना सूत आठ घंटेमें दे सकता है, करीब-करीब उतना ही सूत चरखा भी दे सकता है। इसलिए अगर हिन्दुस्तानकी जनता चाहे, तो थोड़े ही महीनों में