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१५३. मथुरादास त्रिकमजीको लिखे पत्रका अंश

२१ जनवरी, १९२६

तुम्हें अच्छी लगनेवाली दो बातें लिखना तो मैं भूल ही गया। एक, बाने कहा कि वह तुम्हारी देखभाल करनेके लिए खुशीसे आयेगी। दूसरे, उसने कल रात कहा, “मथुरादासको बुलाकर यहाँ क्यों नहीं रखते ?" मैंने कहा, “यहाँकी गरमी उससे सहन नहीं होगी।"

[गुजरातीसे]

बापुनी प्रसादी

१५४. पत्र : जमनालाल बजाजको

गुरुवार [२१ जनवरी, १९२६][१]

चि० जमनालाल,

तुम्हारा पत्र मैंने मंगलवारको पढ़ा; इसलिए चि० रामेश्वरप्रसादको बुला नहीं सका; लेकिन कल वे और केशवदासजी आये थे। मैं उन्हें अपने साथ घूमने ले गया। मैंने रामेश्वरप्रसादको विद्यार्थियोंकी प्रार्थना में भाग लेनेके लिए आमन्त्रित किया। उसने आजसे आना शुरू भी कर दिया है। इस समय मैं उन्हें 'भक्तराजनी यात्रा'[२] सुनाता हूँ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (जी० एन० २८५६) की फोटो-नकलसे।

१५५. मथुरादास त्रिकमजीको लिखे पत्रका अंश

२२ जनवरी, १९२६

तारामती और दिलीपके आनेसे तुम्हारे साथियों की संख्या बढ़ी। दिलीपकी उपस्थिति तो तुम्हारे लिए स्वास्थ्यवर्धक सिद्ध होनी चाहिए।

[गुजरातीसे]

बापुनी प्रसादजी

  1. १. डाककी मुहरसे।
  2. २. पिलग्रिम्स प्रोग्रेसका गुजराती अनुवाद।