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१५१. अपील: त्रावणकोर सरकारसे

साबरमती

२१ जनवरी १९२६

त्रावणकोर सरकारने तथाकथित अछूतों द्वारा मन्दिरोंके आसपासकी सार्वजनिक सड़कोंके उपयोगके बारेमें जो कदम उठाया है उसके लिए वह बधाईकी पात्र है। किन्तु यह तो कदापि नहीं कहा जा सकता कि वह इससे ज्यादा कुछ नहीं कर सकती थी। मैं तो यह आशा किये हूँ कि सरकार तथा लोकप्रिय विधान सभा साहसके साथ इस दिशामें सभी यथोचित कदम उठायेगी और सभी सार्वजनिक संस्थाओं को जिनमें मन्दिर भी शामिल हैं अछूतोंके लिए उन्हीं शर्तोपर खोल दिये जानेका आग्रह करेगी जिन शर्तोंपर उनमें अन्य लोग प्रवेश करते हैं।

मो० क० गांधी

[अंग्रेजी से]

हिन्दू , ६-३-१९२६

१५२. पत्र : जवाहरलाल नेहरूको

२१ जनवरी, १९२६

प्रिय जवाहर,

मुझे खुशी है कि तुम कमलाको अपने साथ ले जा रहे हो। यदि तुम दोनों न आ सको तो जाने से पहले कमसे-कम तुम्हें तो यहाँ आना ही चाहिए। देशबन्धु स्मारकके बारेमें जमनालालजीके नाम तुम्हारा पत्र काफी होगा। अ० भा० चरखा संघके मन्त्री तो तुम ही रहोगे; परन्तु यदि किसी सहायककी आवश्यकता पड़ी तो शंकरलालके प्राप्त हो सकनेकी आशा है। नक्शा तैयार न कर पानेके लिए मैं तुम्हें दोष नहीं दे सकता। तुमने अपना समय व्यर्थ नहीं गँवाया है। तुम्हारे पास यूरोपकी सर्दीके लायक कपड़े होने चाहिए।

तुम्हारा,

बापू

[अंग्रेजी से]

ए बंच ऑफ ओल्ड लेटर्स

२९—२७