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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


इसके अन्तर्गत बहुत-सी ऐसी समस्याओंसे सम्बन्धित व्यवस्थाएँ और इकरारनामे भी आते हैं जो इसके दौरान सामने आये थे। यह भी याद रखना चाहिए कि भारत सरकार इस समझौतेसे असम्बद्ध नहीं थी। भारतीयोंको राहत पहुँचानेवाला कानून लगभग उन्हीं दिनों बनाया गया था और उसे भारत सरकारने कार्यान्वित किया था। जैसा कि इस प्रकारके सभी इकरारनामोंमें सामान्यतया हुआ करता है, सम्बन्धित पक्षोंके बीच हुए पत्र-व्यवहारको पहले ही देख लिया जाता है और उसका अनुमोदन किया जाता है। इसी प्रकार यह पत्रव्यवहार भी दोनों पक्षोंने देख लिया था और दोनोंने उसे स्वीकृत भी कर दिया था। मैंने जो पत्र जनरल स्मट्स- को लिखा था उसमें उन निर्योग्यताओंका उल्लेख है जो राहत अधिनियमके अन्तर्गत नहीं आतीं। उस पत्रमें आशा व्यक्त की गई थी कि जिन निर्योग्यताओंको उस समय दूर नहीं किया गया था उन्हें आगे चलकर दूर कर दिया जायेगा। यह मान लेना ठीक न होगा कि ८ वर्षोंतक घोर कष्ट उठाते रहनेके बाद भारतीय प्रवासी किसी ऐसे समझौते से सन्तुष्ट हो सकते थे जो उनकी स्थितिमें सुधार करनेके बजाय उसे इस हदतक बिगाड़ दे कि उससे अन्तमें भारतीयोंका उन्मूलन ही हो जाये।

किन्तु मैं इस मुद्दे के बारेमें और अधिक नहीं लिखूंगा। भारतीय अपना सुझाव सामने रख चुके हैं। कांग्रेसके उस सुझावके अनुसार यह मुद्दा पंच निर्णयके लिए सौंप दिया जाना चाहिए। भारत सरकारसे निवेदन है कि वह समझौतेके अर्थके बारेमें जाँच-पड़ताल करके एक निश्चित निष्कर्षपर पहुँचे और संघ सरकारसे पंच निर्णयका सिद्धान्त स्वीकार कर लेने को कहे।

दक्षिण आफ्रिकाकी संघ सरकारके मन्त्रियोंका अपने ही द्वारा किये गये इकरारों और व्यवस्थाओंको अस्वीकार करनेका यह पहला ही अवसर नहीं है। वे ३ पौंडी करके सम्बन्धमें गोखलेजीके साथ किये गये इकरारसे भी नट गये थे। इसे फिर सम्मानका प्रश्न मानकर अनाक्रामक प्रतिरोध आन्दोलनके उद्देश्योंमें शामिल करना पड़ा था और तब कहीं अन्तम संघ सरकारने इसे रद किया था। स्पष्ट है कि फिर वही पुरानी चाल चली गई है। १९१४ के समझौतेके यथावत् पालनके सम्बन्धमें दृढ़ता भारतकी अपनी प्रतिष्ठाका प्रश्न है।

[अंग्रेजीसे]

हिन्दू, २२-१-१९२६